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जो कली ख़िलनी थी मसल डाली,
फिर वो ज़ालिम ने घर ख़बर डाली ।
जो चमन इतना खूबसूरत था,
उसने दहशत से बद-नज़र डाली ।
जब मिली ख़ाक में ही इज़्ज़त तो,
उसने कुछ ऐसी बात कर डाली ।
इतनी उजड़ी फ़ज़ा थी गुलशन की,
फिर न खलकत ने भी क़दर डाली ।
अब ज़माने से माँगे है वो सिला,
कितनी भोली नज़र किधर डाली ।
इतनी लाचारगी वो मुफ़लिस की,
फिर दुआ मरने की थी कर डाली ।
मुख़्तसर हो गया युँ उसका सफ़र,
उसने सब ख़त में हो निडर डाली ।
हुक्मरां कैसे कोई बदलेगा,
जिनकी दौलत से जेब भर डाली ।
वक़्त बदला तो 'हर्ष' बदलेगा,
जो सियासत के घर नज़र डाली ।
----हर्ष महाजन 'हर्ष'
बहर:-
2122 1212 22(112)
"याद में तेरी जाग-जाग के हम
रात भर करवटें बदलते रहे ।"
जो कली ख़िलनी थी मसल डाली,
फिर वो ज़ालिम ने घर ख़बर डाली ।
जो चमन इतना खूबसूरत था,
उसने दहशत से बद-नज़र डाली ।
जब मिली ख़ाक में ही इज़्ज़त तो,
उसने कुछ ऐसी बात कर डाली ।
इतनी उजड़ी फ़ज़ा थी गुलशन की,
फिर न खलकत ने भी क़दर डाली ।
अब ज़माने से माँगे है वो सिला,
कितनी भोली नज़र किधर डाली ।
इतनी लाचारगी वो मुफ़लिस की,
फिर दुआ मरने की थी कर डाली ।
मुख़्तसर हो गया युँ उसका सफ़र,
उसने सब ख़त में हो निडर डाली ।
हुक्मरां कैसे कोई बदलेगा,
जिनकी दौलत से जेब भर डाली ।
वक़्त बदला तो 'हर्ष' बदलेगा,
जो सियासत के घर नज़र डाली ।
----हर्ष महाजन 'हर्ष'
बहर:-
2122 1212 22(112)
"याद में तेरी जाग-जाग के हम
रात भर करवटें बदलते रहे ।"
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