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मेरा कोई भी वस्ल-ए-यार नहीं,
तुम भी कहते हो ऐतबार नहीं ।
देखी दिलकश अदा जो आखों में,
कैसे कह दूँ कि तुझको प्यार नहीं
राज-ए-दिल कैसे कोई जानेगा,
कोई ग़म है या कह दे यार नहीं ।
मुझको देखा भी तूने परखा भी,
कैसे समझूँ तू बेकरार नहीं ।
करना होगा तुझे यकीं मुझ पर,
देखा है मुझसा राज़दार नहीं ।
खेले लब पे तेरे हँसी अब क्यूँ,
क्या तुझे मेरा इन्तिज़ार नहीं
जाम-ए-उल्फ़त नहीं पिया लेकिन ,
अब तुझे खुद पे इख़्तियार नहीं ।
गर ये दुश्मन बनी है तन्हाई,
पर ये उलझन कोई दीवार नहीं ।
---हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1212 22(112)
यूँ ही तुम मुझसे बात करती हो ।
मेरा कोई भी वस्ल-ए-यार नहीं,
ReplyDeleteतुम भी कहते हो ऐतबार नहीं ।
देखी दिलकश अदा जो आखों में,
कैसे कह दूँ कि तुझको प्यार नहीं ..
वाह!लाजवाब सृजन आदरणीय
बेहद शुक्रिया आपकी आमद और स्नेहिल शब्दों के लिए ।
ReplyDeleteआभार ।