जो तू उठा दे मुझे रंजो ग़म से पार यहाँ,
मिले सकून तुझी से मुझे करार यहॉं।
कभी निगाह ने तेरी था मार डाला मुझे,
तुझी से दर्द मिला अर मिला ख़ुमार यहाँ ।
मिटा दे ज़ुल्म तू उस दिल की है तलाश मुझे,
महक उठे ये फ़िजां अर चले बहार यहाँ ।
तू कौन शख्स सर-ए-अंजुमन कहा था मुझे,
पुकारता जो मुझे हँस के बार बार यहाँ।
असीम दर्द लिए घूमता हूँ सीने में अब,
दिए हैं ग़म भी तो तूने मुझे हज़ार यहाँ ।
किसी को भी न मिला वो फलक जो मुझको मिला,
शब-ए-विसाल की बातें करे था यार यहाँ ।
यकीं मैं कैसे करूँ 'हर्ष' इन लकीरों पर,
मुहब्बतों में मिला मुझको अश्क़बार यहाँ ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
1212 1122 1212 22(112)
18 जनवरी 22
शब-ए-विसाल=मिलन की रात
अश्क़बार=रोने वाला
सर-ए-अंजुमन=भरी सभा में
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