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हर तरफ है मौत फिर डरना डराना छोड़ दो,
अपने साहिल को भी तुम अपना बताना छोड़ दो ।
अर्थियों के संग भी अपना कोई दिखता नहीं,
आज से अपनों पे अपना हक जताना छोड़ दो ।
जब तलक दस्तक न दे वो दर्द तेरे द्वार पे,
ज़िन्दगी की खुशियों को यूँ ही गँवाना छोड़ दो ।
अस्पतालों से निकलती लाशों को देखो ज़रा,
कह रहीं हैं अपनों से नफ़रत बढ़ाना छोड़ दो ।
ज़िन्दगी में ऐसा मंज़र आएगा सोचा न था,
आदमी से 'हर्ष' अब मिलना मिलाना छोड़ दो ।
-------हर्ष महाजन 'हर्ष'
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