गल्त-फ़हमी थीं बढीं अर फासले बढ़ते रहे,
हम मुहब्बत में हैं लेकिन दुश्मनी करते रहे |
दिल तो था मजबूर लेकिन आँखे आब-ए-चश्म थीं,
पर कदम बढ़ते रहे उनके सितम चलते रहे |
हर सितम आखों में उनकी आइने सा यूँ छला,
हम भी पहलू में दिया बन जलते अर बुझते रहे |
इश्क में खुद शूल बन वो सीने में चुभने लगे,
फिर वही ग़म ज़िंदगी में घुँघरू बन बजते रहे |
कैसे लिख दें दास्ताँ अपने ही लफ़्ज़ों में सनम,
ग़म समंदर हो चले अब दिल में जो पलते रहे |
_______हर्ष महाजन 'हर्ष'
आब-ए-चश्म = आंसू
बहरे रमल मुसम्मन महजूफ
2122-2122-2122-212
आपकी लिखी रचना सोमवार 9 ,अगस्त 2021 को साझा की गई है ,
ReplyDeleteपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
मेरी कृति का लिंक "पांच अंकों में" देने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आपको ।
Deleteसदर
आपने मेरे ब्लॉग पर लिंक भेजने की बात कही थी तो फेसबुक पर या मैसेंजर पर बहुत सारे आपके नाम से लोग हैं । आप मेल पर भेज दीजिएगा लिंक ।
ReplyDeletesangeetaswarup@gmail.com
जी हां आज ही भेजता हूँ आपको लिंक ।
Deleteसादर
हर सितम आखों में उनकी आइने सा यूँ छला,
ReplyDeleteहम भी पहलू में दिया बन जलते अर बुझते रहे |
बहुत सुंदर गज़ल सर।
सादर।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरनीय स्वेता सिंह जी ।
Deleteसादर
बहुत सुंदर नायाब गजल।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरनीय जिज्ञासा जी ।
Deleteसदर
बेहतरीन
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरनीय ।
Deleteइश्क में खुद शूल बन वो सीने में चुभने लगे,
ReplyDeleteफिर वही ग़म ज़िंदगी में घुँघरू बन बजते रहे |
कैसे लिख दें दास्ताँ अपने ही लफ़्ज़ों में सनम,
ग़म समंदर हो चले अब दिल में जो पलते रहे |//
सिर्फ एक शब्द लिखना चाहूंगी हर्ष जी --
वाह !!!!!!!!!!!
वाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब गजल।