मुझको वो मेरे गुनाहों की सज़ा देते हैं,
ज़ह्र देते है वो फिर खुद ही दवा देते है ।
खौफ़ दुनिया का है जो इश्क खता कहते हैं,
करके शोला ये बदन फिर क्यूँ हवा देते हैं |
इश्क भी करते हैं वो ज़ह्र असर होने तक,
ज़ख़्म भी देते हैं वो फिर क्यूँ दुआ देते हैं |
बे-वफ़ा है वो मगर दिल है कि मानेगा नहीं,
दर्द शेरों से मेरे दिल के हरा देते हैं |
'हर्ष" जब कहता है खुद को ही बगावत कर ले,
खुद यूँ हाथों की लकीरों को मिटा देते है ।
___हर्ष महाजन 'हर्ष'©
9 अक्टूबर 2012
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