बात जो दिल में फसी बाहर उछालो लोगो,
जो लगी आग अपने दिल से निकालो लोगो ।
रहनुमा बन के जिन्हें अपने मिटाने आये,
अब तो आँखों से वो पर्दा उठा लो लोगो ।
कौन है अपना यहाँ कौन पराया समझूँ,
कोई पत्थर तो न अपनों पे उछालो लोगो ।
थे तलबगार ओ फिदा उनकी अदाओं पे मगर,
अब वो रूठे हैं चलो उनको मना लो लोगो ।
जो सलीके से न समझेंगे कयामत होगी,
बेवज़ह बहकते अरमान सँभालो लोगो ।
टूटकर शाख़ से जो फूल गिरा करते हैं,
पाँव से मसले कोई उनको उठा लो लोगो ।
होके शर्मिंदा जिन्हें लौट कर जाना होगा,
'हर्ष' की महफिलों में उनको बुला लो लोगो ।
---हर्ष महाजन 'हर्ष'
बह्र: रमल मुसम्मन मख्बून महजूफ
2122 1122 1122 112(22)
दिल की आवाज़ भी सुन.........
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