वो जोर से हँसने लगी अब देखकर चहरा मेरा,
हैरान था मैं सोचकर कि क्या यही रुतबा मेरा ।
तोड़ा है उसने इस तरह लिख कर मुझे इक बेवफा,
क्या दिल में लेके आया था अब अक्स क्या उभरा मेरा ।
बैचैन हूँ उलझा भी हूँ दस्तक जो दिल पे थी तेरी,
पर क्या करूँ ये दिल नहीं है अब तलक पिघला मेरा ।
सहता रहा नफरत यहाँ हँसती रही खामोशियाँ,
मायूस सा तकता रहा उठता रहा परदा मेरा ।
ये ज़लज़ला था कैसा जो इज़्ज़त बहा के ले गया,
मैं देखता ही रह गया बिकता रहा जलवा मेरा ।
क्या मुफलिसी बन कर मिली इंसान के अब भेष में,
क्या गिर गया हूँ इतना मैं क्या गिर गया लहजा मेरा ।
जिन महफिलों में गा रहा था ग़ज़लें उनके नाम की,
उन महफिलों में हर जगह था चल रहा फ़तवा मेरा ।
हर्ष महाजन 'हर्ष' ©
2212 2212 2212 2212
"इक रास्ता है ज़िंदगी जो थम गये तो कुछ नहीं"
"जीना यहाँ मरना यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ"
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(21-12-21) को जनता का तन्त्र कहाँ है" (चर्चा अंक4285)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
बहुत ही सुंदर
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