...
ऐ ज़माने अब चला ऐसी हवा ,
लौट कर आये महब्बत में वफ़ा ।
दूरियाँ मिटती नहीं अब क्या करें,
कोई मिलने का निकालो रास्ता ।
चिलचिलाती धूप में आना सनम,
गुदगुदाती है तुम्हारी ये अदा ।
ज़ख्म दिल के देखकर रोते हैं हम,
याद आये इश्क़ का वो सिलसिला
तज्रिबा इतना है सूरत देख कर,
ये बता देते हैं कितना है नशा ।
वो लकीरों में था मेरे हाथ की,
मैं ज़माने में उसे ढूँढ़ा किया ।
अश्क़ हमको दरबदर करते रहे,
जब तलक़ था दरमियाँ ये फ़ासला ।
दिल के अरमाँ छू रहे हैं अर्श अब,
आपने जब से दिया है हौंसला ।
वो रकीबों में उलझ कर रह गए,
बेगुनाही की मुझे देकर सज़ा ।
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हर्ष महाजन
2122 2122 212
आपके पहलू में आकर रो दिए
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