Sunday, April 15, 2018

ऐ खुदा मुझको ये होंसिला चाहिए


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ऐ खुदा मुझको ये होंसिला चाहिए,
 किस तरह तू मिलेगा दुआ चाहिए ।

उठ चुका है समंदर में ऐसा भँवर,
कश्तियों को कोई रहनुमा चाहिए ।

गर्दिश-ए-दौरां का हूँ मैं मारा हुआ,
बक्श दे अब तेरा आसरा चाहिए ।

तेरे दर पे झुका हूँ झुका ही रहूँ,
इतनी तौक़ीर की इब्तिदा चाहिए ।

ज़ख्म इतने मिले दर्द शाम-ओ-सहर,
हो असर कोई ऐसी दवा चाहिए ।

चाँद दिखता नहीं बदलियाँ हैं बहुत,
दे झलक ऐसा इक आइना चाहिए ।

तू मुहब्बत करे मैं भी सज़दा करूँ
हमको ऐसा कोई सिलसिला चाहिए ।

गर हुआ महफिलों में कहीं उनका ज़िक्र,
सरफिरों से मुझे फ़ासिला चाहिए । 

ज़िन्दगी में बचा मुक्तसर सा सफर,
प्यार में 'हर्ष' अब इंतिहा चाहिए ।

हर्ष महाजन
212 212 212 212

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