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ज़ुदा हुआ पर सज़ा नहीं है,
न ये समझना ख़ुदा नहीं है ।
ज़रा सा नादाँ है इश्क़ में वो,
सबक़ वफ़ा का पढ़ा नहीं है'
दिखाऊँ कैसे मैं दिल के अरमाँ ,
चराग़ दिल का जला नहीं है ।
है दर्द ग़म का सफ़र में अब तक,
कि अश्क़ अब तक गिरा नहीं है ।
न वो ही भूले ये दिल दुखाना,
यहाँ अना भी ख़ुदा नहीं है ।
न देना मुझको ये ज़ह्र कोई,
हुनर तो है पर नया नहीं है ।
लिपट जा आकर तू ऐ महब्बत,
जनाज़ा रुख़्सत हुआ नहीं है ।
---हर्ष महाजन
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बहरे-मुतका़रिब मुज़ाहफ़ की 8 में से एक शक्ल
🌸 वज़्न-- 121 22 -- 121 22
🌸 अर्कान- फ़ऊन फ़ालुन-- फ़ऊन फ़ालुन
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