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कॅरोना की कोई हकीकत बता दे,
अगर ये हुनर है तो जग से मिटा दे ।
ये नफरत की आंधी हो जिसमें भी इतनी,
तो है इल्तिज़ा खुद ख़ुदा ही सुला दे ।
न जाने ये महफ़िल बनी सबकी दुश्मन,
अगर पास रहना है दूरी बढ़ा दे ।
न गर्दिश में हों अब सितारे भी किसी के,
न खुद घर से निकले, न खुद को गिला दे ।
अजब छा रहे आसमाँ पर ये बादल,
यूँ कब तक कटेंगे अँधेरे बता दे ।
न गर्दिश में हों अब सितारे भी किसी के,
न खुद घर से निकले, न खुद को गिला दे ।
अजब छा रहे आसमाँ पर ये बादल,
यूँ कब तक कटेंगे अँधेरे बता दे ।
ये कैसी कयामत, कयामत से पहले,
जहाँ फासले ज़िंदगी को मिला दे ।
तड़पते हुए मुस्कराना ज़रूरी,
खुदा ये सियासत ज़मीं से उठा दे ।
---हर्ष महाजन 'हर्ष'।
122 122 122 122
कॅरोना
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कॅरोना
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