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दिल से इक किस्सा सुहाना चाहता हूं,
इक फ़क़त दिलभर बनाना चाहता हूँ ।
आज बगिया में खिले हैं फूल इतने,
बन के भँवरा खुद दिखाना चाहता हूं ।
आग पानी में लगा दूँ तुम कहो तो,
इन हवाओं को बताना चाहता हूँ ।
एक तितली उम्र भर पहलू में बैठे,
बन परिंदा मैं निभाना चाहता हूँ ।
देख लूँ तेरी अगर आँखों में नफ़रत,
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ ।*
क्यूँ मुहब्बत दे नहीं सकते वो मुझको,
अब सफ़र मैं भी सुहाना चाहता हूं ।
क्या दिलों को रौंदकर सीखा है तुमने,
ग़ज़लों में अपनी उठाना चाहता हूँ।
---- हर्ष महाजन :हर्ष'
2122 2122 2122
छोड़ दो आँचल ज़माना क्या कहेगा
2122 2122 2122
छोड़ दो आँचल ज़माना क्या कहेगा
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