Tuesday, June 15, 2021

मैं उसका अश्क़ भी मैं ही दवा हूँ

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जो घोला ज़ह्र उसका मैं पता हूँ ।

मैं उसका अश्क़ भी मैं ही दवा हूँ।


तेरे दिल में बता शिकवा है कोई,

तो दे देता मैं ख़ुद को ही सज़ा हूँ ।


तुझे मेरी जो आदत हो चुकी है,

फ़िज़ाओं की मैं सच ठण्डी हवा हूँ।


सुना है मर के वो आएगा फिर से,

मैं सदियों से यूँ रातों को जगा हूँ।


कहीं तकमें कहीं गाली जहां में,

कहीं तम हूँ कहीं पर मैं दिया हूँ ।


मुहब्बत है लहू में जानता हूँ,

मगर मैं दुश्मनों में फ़ासला हूँ ।


वो जल्दी आएगा वादा किया था,

न आया कब्र में कब से पड़ा हूँ ।


----हर्ष महाजन 'हर्ष'


बह्र:

1222 1222 122

*अकेले हैं चले आओ जहाँ हो ।*

12 comments:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (18-06-2021) को "बहारों के चार पल'" (चर्चा अंक- 4099) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद सहित।

    "मीना भारद्वाज"

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  2. आ0 मीणा भारद्वाज जी,
    आपका तहे दिख अपने इन ब्लाग पर अभिनंदन करता हूँ ।
    शुक्रिया आपने मेरी इस ग़ज़ल को " बहारों के चार पल" के पटल पर चर्चा अंक ओर रखा ।
    सादर ।

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  3. जो घोला ज़ह्र उसका मैं पता हूँ ।
    मैं उसका अश्क़ भी मैं ही दवा हूँ...वाह!बहुत ही सुंदर सृजन सर।
    सादर

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    1. आ0 अनीता सैनी जी
      पसंदगी का बहुत बहुत
      शुक्रिया ।

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  4. बहुत ही सुंदर

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    1. शुक्रिया आ0 ओंकार जी

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  5. जो घोला ज़ह्र उसका मैं पता हूँ ।

    मैं उसका अश्क़ भी मैं ही दवा हूँ।
    वाह ...... क्या बात , अश्क भी और दवा भी ।

    वो जल्दी आएगा वादा किया था,

    न आया कब्र में कब से पड़ा हूँ ।
    मरने के बाद आने का वादा था न इसलिए ।

    बेहतरीन ग़ज़ल । 👌👌👌👌👌

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    1. संगीता स्वरूप जी
      बहुत ममनून हूँ आपकी ज़र्रानवाज़ी पर ....
      बहुत बहुत नवाज़िश आपकी ।

      सादर

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  6. बेहतरीन ग़ज़ल आदरणीय

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    1. अनुराधा चौहान जी

      इंतखाब पर आपकी आमद और उस पर आपकी रायशुमारी के लिए बहुत बहुत नवाज़िश ।

      सादर

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