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जो घोला ज़ह्र उसका मैं पता हूँ ।
मैं उसका अश्क़ भी मैं ही दवा हूँ।
तेरे दिल में बता शिकवा है कोई,
तो दे देता मैं ख़ुद को ही सज़ा हूँ ।
तुझे मेरी जो आदत हो चुकी है,
फ़िज़ाओं की मैं सच ठण्डी हवा हूँ।
सुना है मर के वो आएगा फिर से,
मैं सदियों से यूँ रातों को जगा हूँ।
कहीं तकमें कहीं गाली जहां में,
कहीं तम हूँ कहीं पर मैं दिया हूँ ।
मुहब्बत है लहू में जानता हूँ,
मगर मैं दुश्मनों में फ़ासला हूँ ।
वो जल्दी आएगा वादा किया था,
न आया कब्र में कब से पड़ा हूँ ।
----हर्ष महाजन 'हर्ष'
बह्र:
1222 1222 122
*अकेले हैं चले आओ जहाँ हो ।*
सादर नमस्कार,
ReplyDeleteआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (18-06-2021) को "बहारों के चार पल'" (चर्चा अंक- 4099) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद सहित।
"मीना भारद्वाज"
आ0 मीणा भारद्वाज जी,
ReplyDeleteआपका तहे दिख अपने इन ब्लाग पर अभिनंदन करता हूँ ।
शुक्रिया आपने मेरी इस ग़ज़ल को " बहारों के चार पल" के पटल पर चर्चा अंक ओर रखा ।
सादर ।
जो घोला ज़ह्र उसका मैं पता हूँ ।
ReplyDeleteमैं उसका अश्क़ भी मैं ही दवा हूँ...वाह!बहुत ही सुंदर सृजन सर।
सादर
आ0 अनीता सैनी जी
Deleteपसंदगी का बहुत बहुत
शुक्रिया ।
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteशुक्रिया आ0 ओंकार जी
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteशुक्रिया गगन जी
Deleteजो घोला ज़ह्र उसका मैं पता हूँ ।
ReplyDeleteमैं उसका अश्क़ भी मैं ही दवा हूँ।
वाह ...... क्या बात , अश्क भी और दवा भी ।
वो जल्दी आएगा वादा किया था,
न आया कब्र में कब से पड़ा हूँ ।
मरने के बाद आने का वादा था न इसलिए ।
बेहतरीन ग़ज़ल । 👌👌👌👌👌
संगीता स्वरूप जी
Deleteबहुत ममनून हूँ आपकी ज़र्रानवाज़ी पर ....
बहुत बहुत नवाज़िश आपकी ।
सादर
बेहतरीन ग़ज़ल आदरणीय
ReplyDeleteअनुराधा चौहान जी
Deleteइंतखाब पर आपकी आमद और उस पर आपकी रायशुमारी के लिए बहुत बहुत नवाज़िश ।
सादर