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अब राज़ क्या है मुझको ज़ाहिर करो ज़रा सा,
दिल में रखा जो तूने मेरे लिए सज़ा सा ।
ये चश्म-ए-अश्क़ देखो, क्या मर्ज़ की दवा है,
हो टीस जिसके दिल में, पूछो उसे नशा सा ।
अब जिस तरफ भी देखूँ तन्हाई का है आलम,
है ज़िन्दगी में तेरे किरदार अब ज़रा सा ।
यूँ महफिलों से मेरा है उठ चुका भरोसा,
पर जानता हूँ मेरा, दिल है जला जला सा ।
उनका था ज़िन्दगी में मुझको फ़क़त सहारा,
अनजान हो के उसने, ख़ुद को किया ज़ुदा सा ।
-----हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2122 221 2122
आदरणीय सर, इतने सुंदर शेर हैं,इस खूबसूरत गज़ल के, कि किसी एक को चुनकर टिप्पणी करना नाइंसाफी होगी,उम्दा उत्कृष्ट रचना के लिए शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआ0 जिज्ञासा सिंह जी आपकी आमद और पसंदगी के लिए तहे दिल से शुक्रिया । उम्मीद है आप यूँ ही इस ब्लॉग का सफर करते रहेंगे ।
Deleteसादर
हर्ष जी ,
ReplyDeleteआपकी गज़लों के तो शुरू से ही कायल रहे हैं ।
किस शेर को चुने और किसे छोड़ूँ ? हर शेर इतना वजन लिए कि सच ही किसी एक पर तो दाद नहीं दे सकती ।
बहुत शानदार ग़ज़ल ।
आ0 संगीता स्वरूप जी पहले इस ब्लाग पर आने ग़ज़ल के बारे में अपनी राय रखने के तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ । आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरी मेहनत वसूल हो गयी । उम्मीद है आप इसी तरह इस ब्लाग का सफर करती रहेंगी । धन्यवाद ।
Deleteसादर ।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 16 जून 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आ0 पम्मी सिंह तृप्ति जी मेरी ग़ज़ल पांच लिंको के पटल पर रखने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।
Deleteशुक्रिया ।