2212 2212 2212 12
इतना हुआ बे-कदर इन ज़ख्मों को पी गया,
इक बे-वफ़ा सी ज़िंदगी अश्कों मे जी गया |
कुछ इस तरह है अब मेरी यादोँ का ये सफ़र,
कुछ रिस रहें हैं ज़ख़्म अब कुछ मैं ही सी गया ।
यूँ इस तरह से गर्दिशों में छोड़कर मुझे,
नज़रों में था जो शख्स मेरे दिल से भी गया ।
दुनियाँ में जो मैं जी रहा इज़्ज़त ओ शान से,
क्या गर्दिश-ए-दौरा चला फिर नाम ही गया ।
वो बे-वफ़ा या बे-हया था यार वो मेरा,
शिकवे ज़ुबाँ पे रंज-ओ-ग़म ख़ुद मैं ही पी गया ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
बहुत गमगीन ख्यालों को लिए लिखी है ग़ज़ल ।
ReplyDeleteबहुत खूब।
बेहद शुक्रिया आपका । आपकी ज़र्रानवाज़ी है । खुदा आपको सलामत रक्खे आदरणीय संगीता स्वरुप् जी।
Deleteसादर ।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
हृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteआपकी आमद औऱ उस पर आपकी होंसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मीना जी।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
Delete
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 21 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
मेरी रचना "पांच लिंको का आनंद पर" रखने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय पम्मी सिंह जी💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
Deleteदर्द बयां करता हर शेर।
ReplyDeleteशानदार अल्फाज़।
बेहद शुक्रिया आदरणीय मन की वीणा जी ।
Deleteसादर
कुछ इस तरह है अब मेरी यादोँ का ये सफ़र,
ReplyDeleteकुछ रिस रहें हैं ज़ख़्म अब कुछ मैं ही सी गया ।
बहुत ही हृदयस्पर्शी...
लाजवाब।
दिली दाद के लिए बेहद शुक्रिया आदरणीय सुधा जी ।
Deleteसादर
वाह बेहतरीन गज़ल।
ReplyDeleteहर बंध लाजवाब बस।
प्रणाम सर
सादर।
बेहद शुक्रिया आदरणीय श्वेता जी ।
Deleteसादर
यूँ इस तरह से गर्दिशों में छोड़कर मुझे,
ReplyDeleteनज़रों में था जो शख्स मेरे दिल से भी गया ।
वाह !
बहुत बहुत शुक्रिया मीना जी
Deleteइसकी धुन कौनसे गीत पर है कृपयां बताएं 🙏
ReplyDeleteआप अपना नाम तो दर्ज कीजियेगा.....
Deleteआप उस धुन पर गुनगुना सकते हैं ।
"दिल ढूँढ़ता है फिर वही फुरसत के रात दिन"