Wednesday, December 8, 2021

था तो वो अजनबी फिर भी जालिम नहीं

अश्क़ पीता रहा अर पिलाता रहा,
बेबसी में मुहब्बत निभाता रहा ।

वो न मेरा हुआ अर न अपना मगर,
वो रकीबों में महफ़िल सजाता रहा ।

था तो वो अजनबी फिर भी जालिम नहीं,
मेरे ज़ख़्मों पे मरहम लगाता रहा ।

जब अना भी मेरी आसमाँ छू रही,
तब भी कदमों में ख़ुद को झुकाता रहा ।

उसकी राहों से जब भी गुजरता कभी,
अलविदा पे वो आँसू गिराता रहा ।  

दिल है वीराँ कहे जब मिले राहों में ,
खुद भी जलता मुझे भी जलाता रहा ।

मैनें नफरत भी उससे बहुत की मगर,
उसका हूँ मैं नसीबा बताता रहा ।

आके ख्वाबों में रातों को इक उम्र से,
खुद भी रोता, मुझे भी रुलाता रहा ।

आस में वो भटकता कई जन्मों से,
कब्र पर मेरी दीपक जलाता रहा ।

हर्ष महाजन 'हर्ष' ©
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16 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १० दिसंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. "पांच लिंको का आनंद पर" मुझे सगामिल करने हेतु शुक्रिया आदरनीय ।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१०-१२ -२०२१) को
    'सुनो सैनिक'(चर्चा अंक -४२७४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. "सुनों सैनिक" मुझे शामिल करने हेतु शुक्रिया आदरनीय ।

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  3. अश्क़ पीता रहा अर पिलाता रहा,
    बेबसी में मुहब्बत निभाता रहा ।

    कुछ तो मजबूरियां रही होंगी!
    इसलिए वो मोहब्बत निभाता रहा!
    सुंदर गजलें!--ब्रजेंद्रनाथ

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  4. अश्क़ पीता रहा अर पिलाता रहा,
    बेबसी में मुहब्बत निभाता रहा ।

    वो न मेरा हुआ अर न अपना मगर,
    वो रकीबों में महफ़िल सजाता रहा ।
    हर बंध शानदार हर्ष जी। बहुत प्यारी और भावपूर्ण रचना है। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।

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  5. वाह! लाजवाब ग़ज़ल,सादर नमन

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  6. लाजवाब लेखन शानदार रचना

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  7. बेहतरीन बोलती गज़ल ।
    हर बंध बहुत अच्छी लगी।
    सादर।

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  8. बहुत सुंदर ग़ज़ल।

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  9. बहुत सुंदर ग़ज़ल

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  10. कम से कम वो हर बात निभाता रहा ......
    शानदार ग़ज़ल ।

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  11. सबसे पहले तो आप सभी का होंसिला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया । जहां तक पेशकश का सवाल है आपकी समीक्षा का हमेशा से मुंतज़र रहूंगा । अच्छा लगा आपने अपना कीमती वक़्त मेरी इस पेशकश पर दिया ।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

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  12. उम्दा!सभी अस्आर बेहतरीन।

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