अश्क़ पीता रहा अर पिलाता रहा,
बेबसी में मुहब्बत निभाता रहा ।
वो न मेरा हुआ अर न अपना मगर,
वो रकीबों में महफ़िल सजाता रहा ।
था तो वो अजनबी फिर भी जालिम नहीं,
मेरे ज़ख़्मों पे मरहम लगाता रहा ।
मेरे ज़ख़्मों पे मरहम लगाता रहा ।
जब अना भी मेरी आसमाँ छू रही,
तब भी कदमों में ख़ुद को झुकाता रहा ।
उसकी राहों से जब भी गुजरता कभी,
अलविदा पे वो आँसू गिराता रहा ।
दिल है वीराँ कहे जब मिले राहों में ,
खुद भी जलता मुझे भी जलाता रहा ।
मैनें नफरत भी उससे बहुत की मगर,
उसका हूँ मैं नसीबा बताता रहा ।
आके ख्वाबों में रातों को इक उम्र से,
खुद भी रोता, मुझे भी रुलाता रहा ।
आस में वो भटकता कई जन्मों से,
कब्र पर मेरी दीपक जलाता रहा ।
हर्ष महाजन 'हर्ष' ©
2 12 212 212 212
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १० दिसंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
"पांच लिंको का आनंद पर" मुझे सगामिल करने हेतु शुक्रिया आदरनीय ।
Deleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(१०-१२ -२०२१) को
'सुनो सैनिक'(चर्चा अंक -४२७४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
"सुनों सैनिक" मुझे शामिल करने हेतु शुक्रिया आदरनीय ।
Deleteअश्क़ पीता रहा अर पिलाता रहा,
ReplyDeleteबेबसी में मुहब्बत निभाता रहा ।
कुछ तो मजबूरियां रही होंगी!
इसलिए वो मोहब्बत निभाता रहा!
सुंदर गजलें!--ब्रजेंद्रनाथ
अश्क़ पीता रहा अर पिलाता रहा,
ReplyDeleteबेबसी में मुहब्बत निभाता रहा ।
वो न मेरा हुआ अर न अपना मगर,
वो रकीबों में महफ़िल सजाता रहा ।
हर बंध शानदार हर्ष जी। बहुत प्यारी और भावपूर्ण रचना है। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई।
वाह! लाजवाब ग़ज़ल,सादर नमन
ReplyDeleteलाजवाब लेखन शानदार रचना
ReplyDeleteबहुत खूब.
ReplyDeleteबेहतरीन बोलती गज़ल ।
ReplyDeleteहर बंध बहुत अच्छी लगी।
सादर।
बहुत सुंदर ग़ज़ल।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ग़ज़ल
ReplyDeleteकम से कम वो हर बात निभाता रहा ......
ReplyDeleteशानदार ग़ज़ल ।
सबसे पहले तो आप सभी का होंसिला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया । जहां तक पेशकश का सवाल है आपकी समीक्षा का हमेशा से मुंतज़र रहूंगा । अच्छा लगा आपने अपना कीमती वक़्त मेरी इस पेशकश पर दिया ।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
ReplyDeleteउम्दा!सभी अस्आर बेहतरीन।
ReplyDeleteशुक्रिया व आभार !!
Delete