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इतनी करो भी हमसे शरारत न यूँ कभी,
आँखों से उठ ही जाए शराफत न यूं कभी |
देखे, जो चांदनी में, नहाया तेरा बदन,
हो जाए शह्र में ये बगावत न यूँ कभी |
वो चाँद जब फलक से कभी इस तरह झुके,
देखी है इस तरह की, इबादत न यूँ कभी |
आओ, चलें चमन से, कहीं दूर, गुलबदन,
ये चाँदनी, करे वो, ख़िलाफ़त न यूँ कभी |
चर्चा तेरी जफ़ाओं, का ये शह्र ढो रहा,
लगने लगे ये दिल में अदालत न यूँ कभी |
हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2121 1221 212
https://www.facebook.com/167070936684712/posts/989831204408677/
6th Oct 2015 edited
वाह ... लाजवाब शेरोन से सजी एक और लाजवाब गज़ल ...
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरनीय दिगम्बर जी ।
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