बहुत बदनाम कर के छोड़ा उसने इस जमाने में,
लगेंगी सदियाँ मुझको बे-वफ़ा के ग़म भुलाने में ।
ये उसकी ज़िद थी ज़ख़्मों का रहे मेरा सफ़ऱनामा,
लगाई बेसबब फिर तोहमतें उसने सताने में ।
दिखाया इश्क़ उसने आसतीं का साँप था लेकिन,
सुनाकर जुल्फों के नग्में वो आया आशियानें में ।
जगाकर दिल की धड़कन शहर-ए-दिल जब कर दिया रोशन,
भरी महफ़िल में था फिर मुब्तिला रहबर बनाने में ।
मुहब्बत में कहीं मैं इस तरह मशहूर हो जाता,
लगाता बरसों मैं भी दोस्ती को आजमाने में ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
1222 1222 1222 1222
इन नग्मों की धुन पर गुनगुनाइए
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1. मुहब्बत हो गई जिनको वो परवाने कहां जाएं
2. मुझे तेरी मुहब्बत का सहारा मिल गया होता
3. चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों