बहुत बदनाम कर के छोड़ा उसने इस जमाने में,
लगेंगी सदियाँ मुझको बे-वफ़ा के ग़म भुलाने में ।
ये उसकी ज़िद थी ज़ख़्मों का रहे मेरा सफ़ऱनामा,
लगाई बेसबब फिर तोहमतें उसने सताने में ।
दिखाया इश्क़ उसने आसतीं का साँप था लेकिन,
सुनाकर जुल्फों के नग्में वो आया आशियानें में ।
जगाकर दिल की धड़कन शहर-ए-दिल जब कर दिया रोशन,
भरी महफ़िल में था फिर मुब्तिला रहबर बनाने में ।
मुहब्बत में कहीं मैं इस तरह मशहूर हो जाता,
लगाता बरसों मैं भी दोस्ती को आजमाने में ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
1222 1222 1222 1222
इन नग्मों की धुन पर गुनगुनाइए
👇👇
1. मुहब्बत हो गई जिनको वो परवाने कहां जाएं
2. मुझे तेरी मुहब्बत का सहारा मिल गया होता
3. चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 13 मार्च 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत शुक्रिया दिग्विजय जी ।
Deleteबहुत उम्दा ग़ज़ल।
ReplyDeleteहर शेर दिल को छू रहा है।
दिली धन्यवाद आपका । उम्मीद करता हूँ आप आइंदा भी होंसिला अफजाई के लिए आते रहेंगे ।
Deleteबेहतरीन शायरी
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-3-22) को "खिलता फागुन आया"(चर्चा अंक 4370)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
शुक्रिया कामिनी जी ।
Deleteबहुत सुंदर शायरी।
ReplyDeleteदिली धन्यवाद आपका । उम्मीद करता हूँ आप आइंदा भी होंसिला अफजाई के लिए आते रहेंगे ।
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