ख़ुदा के सामने सर को झुका लेता तो अच्छा था ,
ज़रा से ग़म ही थे उनको छुपा लेता तो अच्छा था ।
कभी लिख कर ख़तों में उनको सच खुद ही बता देता,
मुहब्बत में अना को खुद हटा लेता तो अच्छा था ।
उठीं जो बद्दुआए थीं कभी उनके लिए लेकिन,
वो थे तो ज़िंदगी मेरी बचा लेता तो अच्छा था ।
दरींचों से मैं उनके दिल में दाखिल तो हुआ लेकिन,
जो उसमें आग नफ़रत की बुझा लेता तो अच्छा था ।
खुशी से झूमना चाहत थी उनकी पर मिली गफ़लत,
ज़रा उनके लिए मैं मुस्करा लेता तो अच्छा था ।
उन्हें था नाज़ जुल्फों पर मगर उम्मीद कुछ हमसे,
मैं उनकी जुल्फें ग़ज़लों में सजा लेता तो अच्छा था ।
लबों पर प्यास शिद्दत से मगर थी दर्द से नफरत,
छुपा कर दर्द आंखों में बसा लेता तो अच्छा था ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
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आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 9 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
बहुत उम्दा ग़ज़ल. दाद स्वीकारे।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरनीय !
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