उनके किस्से नए भी पुराने लगे,
जो भी दिन थे पुराने सुहाने लगे ।
उनकी ज़ुल्फ़ों तले शाम होगी कभी,
ऐसा मौसम बना पर ज़माने लगे ।
ज़ख्म नखरों ने उनके दिए थे बहुत,
आहें निकली तो उनको तराने लगे ।
जिनके आने से दिल था समंदर हुआ,
गैर की बाहों में दिल लुटाने लगे ।
रो पड़ा था फलक बेवफा देखकर,
फिर पुराने बहाने सुनाने लगे ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
212 212 212 212
"तुम अगर साथ देने का वादा करो"
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 6 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
अथ स्वागतम् शुभ स्वागतम्
सुन्दर सुन्दर बहुत सुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteवाह!खूबसूरत सृजन ।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(०८-०४ -२०२२ ) को
''उसकी हँसी(चर्चा अंक-४३९४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
वाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब गजल ।
बहुत सुंदर रचना
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