हो रही रुख़्सती अब मेरी धाम को,
फिर चढ़ा फूल जितने चढ़ें शाम को ।
चल दिया पाँव उल्टे मैं हो बेवफा,
जी रहा अब तलक जो तेरे नाम को ।
रो रहे चाँद तारे फलक पर सभी,
दे रहा हूँ परख ले तू इस दाम को ।
लाश पर जो भी करना ये मातम मेरा,
पर्दा कर लेना पीना हो जब जाम को ।
कैसा किरदार मुझको ये तूने दिया,
ऐ ख़ुदा कैसे निपटाऊँ इस काम को ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
212 212 212 212
12 जनवरी 22
No comments:
Post a Comment