Tuesday, January 11, 2022

हो रही रुख़्सती अब मेरी धाम को

 

हो रही रुख़्सती अब मेरी धाम को,
फिर चढ़ा फूल जितने चढ़ें शाम को ।

चल दिया पाँव उल्टे मैं हो बेवफा,
जी रहा अब तलक जो तेरे नाम को ।

रो रहे चाँद तारे फलक पर सभी,
दे रहा हूँ परख ले तू इस दाम को ।

लाश पर जो भी करना ये मातम मेरा,
पर्दा कर लेना पीना हो जब जाम को ।

कैसा किरदार मुझको ये तूने दिया,
ऐ ख़ुदा कैसे निपटाऊँ इस काम को ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
212 212 212 212 
12 जनवरी 22

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