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न दिल में रखना अना तू इतनी, कि वो मुहब्बत निगल न जाये,
ख्याल रखना कि बिन तुम्हारे ये दिल से धड़कन निकल न जाये ।
तुम्हारी यादें हैं मेरी मंज़िल, तुझी से मेरा है आशियाँ अब,
बता दो तुम राजे दिल भी अपना, कहीं ये डर मुझको छल न जाये ।
थकी हैं पलकें हैं खुश्क आँखे, फ़क़त ये उलझन है बेबसी की,
हुए जो इतने निशब्द लब अब, कहीं ये चुप दिल को खल न जाए ।
ज़रा तो दिल में उतर के देखो, तमाम किस्से बदल गए हैं,
बड़ा ही दुश्मन है ये ज़माना, निगाहें उनकी निगल न जाये ।
उठी जो दिल पे ख़लिश सी इतनी, नज़र भी करती सवाल कितने,
कि अब अँधेरों की सरसराहट में दिल के अरमां ही ढल न जाये ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
12122 12122 12122 12122
"छुपा लो यूँ दिल में प्यार मेरा कि जैसे मंदिर में लौ दिए की"
बेहतरीन गज़ल सर।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १ सितंबर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
शुक्रिया श्वेता जी
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आपका ।
Deleteबेहद शानदार ग़ज़ल
ReplyDeleteबधाई
बहुत बहूत शुक्रिया ।
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब गजल...
पसंदगी के लिए बेहद शुक्रिया
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteआदरणीय सर बहुत ख़ूब,बेहतरीन ग़ज़लें
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आदरनीय ।
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