Tuesday, March 31, 2020

तबाही की कोई हकीकत बता दे,

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कॅरोना की कोई हकीकत बता दे,
अगर ये हुनर है तो जग से मिटा दे ।

ये नफरत की आंधी हो जिसमें भी इतनी,
तो है इल्तिज़ा खुद ख़ुदा ही सुला दे ।

न जाने ये महफ़िल बनी सबकी दुश्मन,
अगर पास रहना है दूरी बढ़ा दे ।

न गर्दिश में हों अब सितारे भी किसी के,
न खुद घर से निकले, न खुद को गिला दे ।

अजब छा रहे आसमाँ पर ये बादल,
यूँ कब तक कटेंगे अँधेरे बता दे ।

ये कैसी कयामत, कयामत से पहले,
जहाँ फासले ज़िंदगी को मिला दे ।

तड़पते हुए मुस्कराना ज़रूरी,
खुदा ये सियासत ज़मीं से उठा दे ।

---हर्ष महाजन 'हर्ष'।
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कॅरोना

Saturday, March 28, 2020

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जाने निकल के घर से, सड़कों पे आते हैं क्यूँ,
ये लोग ज़िन्दगी को ठेंगा दिखाते हैं क्यूँ ।

क्यूँ बेखबर है दुनियाँ जब हर तरफ खबर है,
हर शख्स में है कातिल, ऐसा बताते हैं क्यूँ ।

कैसी है आपदा ये, हर शख्स डरा हुआ है,
खुदगर्ज़ बन के अपने घर को जलाते हैं क्यूँ ।

लाखों की भीड़ देखो, दिल्ली से चल पड़ी है
कुछ हो रही सियासत, जाने बताते हैं क्यूँ ।

इतने घने ये बादल, जाने गुबार किसका,
दुनियाँ से रोशनी को ऐसे चुराते हैं क्यूँ ।'

ये वक़्त बेवफा है, समझो तो ज़िन्दगी है,
वर्णा यूँ बस्तियों में, मातम बुलाते हो क्यूँ ।

-------हर्ष महाजन 'हर्ष'

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