Thursday, December 30, 2021

ज़िन्दगी से मुझे कुछ गिला ही नहीं

ज़िन्दगी से मुझे कुछ गिला ही नहीं ,
जब सिवा रंजिशों के मिला ही नहीं ।

दर्द हो कर जुदा उसने ऐसा दिया,
अर कहा इससे बढ़ कर सज़ा ही नहीं ।

चाह थी इश्क कर मैं फलक पे उडूँ,
इश्क़ पर मुझसे अब तक हुआ ही नहीं ।

मैं तड़प कर गिरा, वो नज़र से गिरा,
मैं तो उठ न सका, वो उठा ही नहीं ।

उसको बर्बाद कर दूँ थे मौके मगर,
पीठ पर  मुझसे खंजर चला ही नहीं ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
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Saturday, December 25, 2021

ऐसे नसीब का तू बता खुद भी क्या करूँ

 बीती है किस तरह से कहूँ अजनबी के साथ,
खेला हो खेल जैसे मेरी ज़िंदगी के साथ ।

ऐसे नसीब का तू बता खुद भी क्या करूँ,
जो दे रहा सलाम मुझे बेरूखी के साथ ।

वो शख्स चल दिया है मेरा बन के हमसफर,
होते रहे थे हादसे जिस आदमी के साथ । 

शिकवे गिले भी खूब रहे मुझको नसीब से,
है इल्तिज़ा ख़ुदाया न हो ये किसी के साथ ।

आया नहीं था मुझको कभी  इतना सा हुनर,
रोता फिरूँ मैं खुशियों में भी बेबसी के साथ ।

किस-किस तरह से आ गिरी रिश्तों पे बिजलियाँ,
टूटा था रिश्ता मेरा मगर सादगी के साथ ।

रिश्ता यूँ रक्खा ताक पे उसने भी इस तरह,
गुजरी हो अजनबी की जैसे अजनबी के साथ ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
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"मिलती है ज़िन्दगी में मुहब्बत कभी-कभी"

Monday, December 20, 2021

वो जोर से हँसने लगी अब देखकर चहरा मेरा

 

वो जोर से हँसने लगी अब देखकर चहरा मेरा,
हैरान था मैं सोचकर कि क्या यही रुतबा मेरा ।

तोड़ा है उसने इस तरह लिख कर मुझे इक बेवफा,
क्या दिल में लेके आया था अब अक्स क्या उभरा मेरा ।

बैचैन हूँ उलझा भी हूँ दस्तक जो दिल पे थी तेरी,
पर क्या करूँ ये दिल नहीं है अब तलक पिघला मेरा ।

सहता रहा नफरत यहाँ हँसती रही खामोशियाँ,
मायूस सा तकता रहा उठता रहा परदा मेरा ।

ये ज़लज़ला था कैसा जो इज़्ज़त बहा के ले गया,
मैं देखता ही रह गया बिकता रहा जलवा मेरा ।

क्या मुफलिसी बन कर मिली इंसान के अब भेष में,
क्या गिर गया हूँ इतना मैं क्या गिर गया लहजा मेरा ।

जिन महफिलों में गा रहा था ग़ज़लें उनके नाम की,
उन महफिलों में हर जगह था चल रहा फ़तवा मेरा ।

हर्ष महाजन 'हर्ष' ©
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"इक रास्ता है ज़िंदगी जो थम गये तो कुछ नहीं"
"जीना यहाँ मरना यहाँ इसके सिवा जाना कहाँ"


Friday, December 17, 2021

मिट्टी की सोंधी खुशबू मिलेगी जिधर

मिट्टी की सोंधी खुशबू मिलेगी जिधर,
गीत हम धड़कनों पे सुना दें उधर ।

तुम चले आना दिल जब भी मचले तेरा,
खोल देंगे मुहब्बत से अपना जिगर ।

हक मुहब्बत का हमने अदा कर दिया,
तुम दिखा दो हमें अब तो अपना हुनर ।

नेक राहों पे चल के है खोया बहुत,
अब बता दो हमें अब कि जाएं किधर ।

जब भी आओगे तुम देना दस्तक  हमें,
प्यार से इक ग़ज़ल गा देंगे हम इधर ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'©
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Wednesday, December 8, 2021

था तो वो अजनबी फिर भी जालिम नहीं

अश्क़ पीता रहा अर पिलाता रहा,
बेबसी में मुहब्बत निभाता रहा ।

वो न मेरा हुआ अर न अपना मगर,
वो रकीबों में महफ़िल सजाता रहा ।

था तो वो अजनबी फिर भी जालिम नहीं,
मेरे ज़ख़्मों पे मरहम लगाता रहा ।

जब अना भी मेरी आसमाँ छू रही,
तब भी कदमों में ख़ुद को झुकाता रहा ।

उसकी राहों से जब भी गुजरता कभी,
अलविदा पे वो आँसू गिराता रहा ।  

दिल है वीराँ कहे जब मिले राहों में ,
खुद भी जलता मुझे भी जलाता रहा ।

मैनें नफरत भी उससे बहुत की मगर,
उसका हूँ मैं नसीबा बताता रहा ।

आके ख्वाबों में रातों को इक उम्र से,
खुद भी रोता, मुझे भी रुलाता रहा ।

आस में वो भटकता कई जन्मों से,
कब्र पर मेरी दीपक जलाता रहा ।

हर्ष महाजन 'हर्ष' ©
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