Wednesday, August 26, 2020

जाम खाली सामने खलते रहे



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जाम खाली सामने खलते रहे,
ज़ख़्म दिल के दिल में ही पलते रहे l

नीदों से जब हो गए हम बेदखल,
साथ बीते दिन सभी खलते रहे ।

चाँद जब बदली से फिर-फिर झाँकता,
दिल में उठते कुछ भँवर छलते रहे ।

ज़िन्दगी वीरान जब होने लगी,
सपने फिर बन ख़ौफ़ सँग चलते रहे ।

इन लबों पर क्यूँ भला आती हँसी,
आफ़ताब-ए-इश्क़ में जलते रहे ।

-हर्ष महाजन 'हर्ष'

2122 2122 212
'दिल के अरमां आंसुओं में बह गए'

10 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २८ अगस्त २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. मेरी रचना "पांच लिंकों का आनंद पर" रखने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।

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    1. शुक्रिया सुशील कुमार जोशी जी ।

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  3. वाह !हमेशा की तरह लाजवाब सर।
    सादर

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    1. अनिता जी दिली शुक्रिया ।

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  4. जाम खाली सामने खलते रहे, .. बिहार की शराबबंदी के दर्द को उजागर करती पंक्ति ..:)

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    1. शुक्रिया सिन्हा जी ।

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  5. बहुत बहुत शुक्रिया ।

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