Wednesday, November 11, 2020

यार जब लौट के दर पे मेरे आया होगा,

 

ग़ज़ल



यार जब लौट के दर पे मेरे आया होगा,

आख़िरी ज़ोर मुहब्बत ने लगाया होगा ।


याद कर कर के वो तोड़ी हुई क़समें अपनी,

आज अश्कों के समंदर में नहाया होगा ।


ज़िक्र जब मेरी ज़फ़ाओं का किया होगा कहीं,

ख़ुद को उस भीड़ में तन्हा ही तो पाया होगा ।


दर्द अपनी ही अना का भी सहा होगा बहुत,

फिर से जब दिल में नया बीज लगाया होगा ।


जब दिया आस का बुझने लगा होगा उसने,

फिर हवाओं को दुआओं से मनाया होगा ।


----हर्ष महाजन 'हर्ष'

2122 1122 1122 22(112)

होके मज़बूर मुझे उसने भुलाया होगा ।

3 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ नवंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।

    सादर
    धन्यवाद।

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    1. शुकृया श्वेता सिन्हा जी ।

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  2. बहुत बहुत शुक्रिया सुशील जी

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