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मुहब्बत की जब इंतिहा कीजियेगा,
निगाहों से तुम भी नशा कीजियेगा ।
सफ़र दिल से दिल तक लगे जब भी मुश्किल ,
दुआओं की फिर तुम दवा कीजियेगा ।
नज़र ज़ुल्फ़ों पे गर टिकें ग़ैरों की तो,
यूँ आँखों में नफ़रत अदा कीजियेगा ।
मुझे सोच, हों चश्म, नम तो समझना,
ये जज़्बात अपने अता कीजियेगा ।
ये है इल्तिज़ा मर भी जाऊँ तो इतनी,
ख़ुदा से न तुम ये गिला कीजियेगा ।
मेरी आरज़ू , बंदगी तुम समझ कर,
अदा फिर उम्मीद-ए-वफ़ा कीजियेगा ।
निगाहों में मेरी फ़क़त तुम ही मंज़िल,
मुक़द्दर की अब इब्तिदा कीजियेगा ।
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हर्ष महाजन 'हर्ष'
122 122 122 122
अज़ी रूठ कर तुम कहाँ जाइयेगा
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