Wednesday, November 11, 2020

मुहब्बत की जब इंतिहा कीजियेगा,

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मुहब्बत की जब इंतिहा कीजियेगा,

निगाहों से तुम भी नशा कीजियेगा ।


सफ़र दिल से दिल तक लगे जब भी मुश्किल ,

दुआओं की फिर तुम दवा कीजियेगा ।


नज़र ज़ुल्फ़ों पे गर टिकें ग़ैरों की तो,

यूँ आँखों में नफ़रत अदा कीजियेगा ।


मुझे सोच, हों चश्म, नम तो समझना,

ये जज़्बात अपने अता कीजियेगा ।


ये है इल्तिज़ा मर भी जाऊँ तो इतनी,

ख़ुदा से न तुम ये गिला कीजियेगा ।


मेरी आरज़ू , बंदगी तुम समझ कर,

अदा फिर उम्मीद-ए-वफ़ा कीजियेगा ।


निगाहों में मेरी फ़क़त तुम ही मंज़िल,

मुक़द्दर की अब इब्तिदा कीजियेगा ।



हर्ष महाजन 'हर्ष'

122 122 122 122

अज़ी रूठ कर तुम कहाँ जाइयेगा

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