Monday, June 13, 2022

अगर दूसरा प्यार छूकर गया है

 

अगर दूसरा प्यार छूकर गया है,
समझना हया का वो पर्दा उठा है ।

ज़ुबां पर भी चर्चे यूं होंगे जहां में,
यूं देखोगे तंजो से हर दिल भरा है ।

बहुत चाहोगे दिल से तुम गुनगुनाना,
मगर देखोगे साज टूटा पड़ा है ।

यूं निकलेंगे दिल से जो गम के फसाने,
लगेगी तुम्हें ज़िंदगी इक सज़ा है ।

बुलंदी मिलेगी मुहब्बत में लेकिन,
लगेगा ये इल्जाम तू बेवफ़ा है ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'

122 122 122 122
"तेरे प्यार का आसरा चाहता हूं"


Monday, April 4, 2022

उनके किस्से नए भी पुराने लगे

 

उनके किस्से नए भी पुराने लगे,
जो भी दिन थे पुराने सुहाने लगे ।

उनकी ज़ुल्फ़ों तले शाम होगी कभी,
ऐसा मौसम बना पर ज़माने लगे ।

ज़ख्म नखरों ने उनके दिए थे बहुत,
आहें निकली तो उनको तराने लगे ।

जिनके आने से दिल था समंदर हुआ,
गैर की बाहों में दिल लुटाने लगे ।

रो पड़ा था फलक बेवफा देखकर,
फिर पुराने बहाने सुनाने लगे ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
212 212 212 212
"तुम अगर साथ देने का वादा करो"


Saturday, March 12, 2022

बहुत बदनाम कर के छोड़ा उसने इस जमाने में

बहुत बदनाम कर के छोड़ा उसने इस जमाने में,
लगेंगी सदियाँ मुझको बे-वफ़ा के ग़म भुलाने में ।

ये उसकी ज़िद थी ज़ख़्मों का रहे मेरा सफ़ऱनामा, 
लगाई बेसबब फिर तोहमतें उसने सताने में ।

दिखाया इश्क़ उसने आसतीं का साँप था लेकिन,
सुनाकर जुल्फों के नग्में वो आया आशियानें में ।

जगाकर दिल की धड़कन शहर-ए-दिल जब कर दिया रोशन,
भरी महफ़िल में था फिर मुब्तिला रहबर बनाने में ।

मुहब्बत में कहीं मैं इस तरह मशहूर हो जाता,
लगाता बरसों मैं भी दोस्ती को आजमाने में । 

हर्ष महाजन 'हर्ष'
1222 1222 1222 1222
इन नग्मों की धुन पर गुनगुनाइए
👇👇
1. मुहब्बत हो गई जिनको वो परवाने कहां जाएं
2. मुझे तेरी मुहब्बत का सहारा मिल गया होता 
3. चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाए हम दोनों 

Monday, March 7, 2022

ख़ुदा के सामने सर को झुका लेता तो अच्छा था

ख़ुदा के सामने सर को झुका लेता तो अच्छा था ,
ज़रा से ग़म ही थे उनको छुपा लेता तो अच्छा था ।

कभी लिख कर ख़तों में उनको सच खुद ही बता देता,
मुहब्बत में अना को खुद हटा लेता तो अच्छा था ।

उठीं जो बद्दुआए थीं कभी उनके लिए लेकिन,
वो थे तो ज़िंदगी मेरी बचा लेता तो अच्छा था ।

दरींचों से मैं उनके दिल में दाखिल तो हुआ लेकिन,
जो उसमें आग नफ़रत की बुझा लेता तो अच्छा था ।

खुशी से झूमना चाहत थी उनकी पर मिली गफ़लत,
ज़रा उनके लिए मैं मुस्करा लेता तो अच्छा था ।

उन्हें था नाज़ जुल्फों पर मगर उम्मीद कुछ हमसे,
मैं उनकी जुल्फें ग़ज़लों में सजा लेता तो अच्छा था ।

लबों पर प्यास शिद्दत से मगर थी दर्द से नफरत,
छुपा कर दर्द आंखों में बसा लेता तो अच्छा था ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
1222 1222 1222 1222

Tuesday, March 1, 2022

इतनी सी बात गर ये बशर जान जाएगा

इतनी सी बात गर ये बशर जान जाएगा,
नश्वर जहाँ से तन्हा ये इंसान जाएगा ।

तेरे हकूक तेरे नहीं सब खुदा का है,
थोड़ा जहाँ में ठहर तू पहचान जाएगा ।

कितना संभल के भी तू बना अपना आशियाँ,
मत सोच खाली कोई भी तूफ़ान जाएगा । 

गर ज़िन्दगी में तुझको लगे डर अँधेरों से,
नज़रें टिकाना संग निगहबान जाएगा ।

है इल्तिज़ा ख़ुदा से बसा दे बशर कोई,
जो लिख के हिज़्र पर कोई दीवान जाएगा ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2121 1221 212

Sunday, February 27, 2022

न जाने मुझको वो क्यूँ तलखियाँ दिखा के गया

न जाने मुझको वो क्यूँ तलखियाँ दिखा के गया,
था बावफ़ा वो मगर मुझको क्यूँ रुला के गया ।

हुआ यकीन मुझे इस फरेबी दुनियाँ पे अब,
गुलाब बन जो मिला कांटे फिर चुभा के गया ।

शिकायतें थीं मुझे पर गिले भी उसको बहुत,
ख्याल अपनी वो ग़ज़लों में कुछ सुना के गया ।

निभा रहा था वो शिद्दत से दोस्ती को मगर,
जले चरागों को दिल से वो क्यूँ बुझा के गया ।

यकीं था इश्क़ पे जिसको गुमाँ भी मुझपे बहुत,
जुदाई के वो सनम दिन क्यूँ अब थमा के गया ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
1212 1122 1212 22/112

गुनगुनाइए इस धुन पर:-

◆न मुँह छुपा के जियो औऱ न सर झुका के जियो ।

Friday, February 25, 2022

दगा दिया था अपनों ने यही मुझे मलाल था

दगा दिया था अपनों ने यही मुझे मलाल था ।
कसूर भी था अपनों की ज़मीर का कमाल था ।

यूँ हसरतों की आग जिनकी रूह तक निगल गई,
ये वलवलों का जोर था या उनका ही बवाल था ।

मैं जिस के वास्ते भी लिख रहा था वो इबारतें,
वो जिस तरह जुदा हुआ था वो भी इक सवाल था ।

चुना था जिसने हमसफ़र उसी ने छोड़ा ये सफर,
न यार ही रहा यूँ हसरतों का इंतकाल था ।

नसीब में नहीं था जो उसी का रंजो गम था ये,
किसे पता ये बे-वफा का रंग बे-मिसाल था ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
1212 1212 1212 1212 

वलवलों=उमंग
बवाल= झंझट
◆◆◆●◆◆◆


Wednesday, February 23, 2022

लफ्ज़ दे जाते हैं जो ज़ख़्म दिखाएँ कैसे,

लफ्ज़ दे जाते हैं जो ज़ख़्म दिखाएँ कैसे,
दर्द सीने में जो उठता है बताएँ कैसे ।

वो जो कहता है कि लफ़्ज़ों में है जन्नत लेकिन,
लफ्ज़ मरहम है बता फिर वो लगाएँ कैसे ।

मीठी धड़कन को लिए पास से गुजरेगा कोई,
उससे उठती जो खनक दिल को सुनाएँ कैसे ।

जिसकी चोटों ने मुझे चैन से रहने न दिया,
उसपे इल्ज़ाम मुहब्बत का बनाएँ कैसे ।

इश्क़ करते भी नहीं औऱ किनारा भी नहीं,
दिल की महफ़िल में बता उसको बिठायें कैसे ।

उसकी जुल्फें ही गुनाहों का सबब है लेकिन,
ज़ह्र से अपने कसक उसकी मिटायें कैसे ।

ये भी सोचा था कि दिलबर का नजारा कर लूँ,
पर बता उसकी मुहब्बत को जगाएँ कैसे ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1122 1122 22(112)

इसी बह्र पर गीत गुनगुना कर देखें
""""""""""""""""""""""""""""""""""""""
●दिल की आवाज भी सुन दिल के फसाने पे न जा 
● ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात 
●कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया 
●चुनरी सँभाल गोरी उड़ी चली जाए रे 
●कोई हमदम न रहा कोई सहारा न रहा 
●पाँव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी 
●तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं
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Tuesday, February 22, 2022

उठ के महफ़िल से चला उसने मनाया भी नहीं


उठ के महफ़िल से चला उसने मनाया भी नहीं,
कोई शिकवा या गिला मुझको बताया भी नहीं ।

ज़िन्दगी में था सुना है वो बहुत खुश भी मगर,
उसने कोई दीप मुहब्बत का जलाया भी नहीं ।

किस तरह चेहरे पे चेहरा था टिकाया उसने,
दिल पे कितने हैं ज़ख़्म उसके दिखाया भी नहीं ।

मैनें खोई थी मुहब्बत यूँ ही किसकी खातिर,
जिसने वादा तो कभी अपना निभाया भी नहीं ।

उसके अहसास को छूने की थी जुर्रत मैनें,
उसकी हसरत थी कि नफ़रत ये जताया भी नहीं ।

आज दिल पे जो निगाहों से दिया उसने ज़ख़्म,
मुझपे इल्जाम कोई उसने लगाया भी नही ।

आजकल मुझको बहारें भी खिजां लगती हैं,
'हर्ष' ने खुद भी कभी मुझको सताया भी नहीं ।


हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1122 1122 22(112)
◆दिल की आवाज भी सुन दिल के फसाने पे न जा ।
◆रंग और नूर की बारात कुसी पेश करूँ
◆तेरी तस्वीर को सीने पे लगा रक्खा है ।


Saturday, February 19, 2022

जाने अखियों से छलकते अश्क क्यूँ उस याद में

 



                          ग़ज़ल

जाने अखियों से छलकते अश्क क्यूँ उस याद में,
जिसने तडपाया मुझे जलती हुई इक आग में |

बेसबब ग़म आह बन निकलेगी उसके लहजे से,
दिल धड़कता पर रहेगा आस रख फ़रियाद में |

जिस्म से ज्यूँ रूह निकले होता क्या पूछो मुझे,
आरज़ू उसके मिलन की ज्यूँ रहे जब ख़्वाब में |

ज़ुल्फ़ दिल पे यूँ है काबिज़ भूल कर भूला नहीं,
चल रहा जिसका नशा देखो अभी भी शराब में |

जिन हवाओं में कयामत अब तलक देखी न थी,
वो अदा इन आँखों ने देखी थी उनके शबाब में ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'


Monday, February 7, 2022

रूठी है ज़िन्दगी तो मुक़द्दर बदल गए

 

                    ग़ज़ल

रूठी है ज़िन्दगी तो मुक़द्दर बदल गए ,
दुनियाँ के भी हों जैसे ये तेवर बदल गए ।

दीवार-ओ-दर में खुश था जहाँ तुम थे साथ पर,
कब नींव के न जाने ये पत्थर बदल गए ।

जिनके भी साये में रहे हम उम्र भर जहाँ,
अब क्यूँ सभी शज़र वो वहॉं पर बदल गए ।

रक्खा किये थे जिनको यूँ शानों पे हर जगह,
दिल के करीब शख्स वो अंदर बदल गए ।

रिश्तों में रक्खा बैर सदा उसने इस तरह,
नदियों में बंट के फिर वो समंदर बदल गए ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2121 1221 212


●मिलती है ज़िन्दगी में मुहब्बत कभी कभी
●‎पहले‬ तो अपने दिल की रजा जान जाइए |


Saturday, February 5, 2022

पतझड़ हुई तो टिक न सका शाख पे लेकिन

पतझड़ हुई तो टिक न सका शाख पे लेकिन,
कमज़ोर नहीं था पत्ता वो बुनियाद से लेकिन ।

आँखों से गिरा अश्क़ जो दामन में खो गया,
वो मिट तो गया जान-ए-वफ़ा शान पे लेकिन ।

महका रहा था रोज शज़र को था मगर वो,
पतझड़ हुई तो छोड़ा उसी पेड़ ने लेकिन ।

क्या सोच के था चुन लिया यूँ भीड़ में मुझको,
पत्ते तो हरे लाखों थे उस पेड़ के लेकिन ।

जब डोलियों में बैठ चलें बेटियाँ अपनी,
घर-घर तो रहे पर रहे वीरानी में लेकिन ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
221  1221  1221 122

इस बहर पर कुछ गीत देखिये  और इनमें किसी भी धुन पर मेरी ग़ज़ल गुनगुनाइयेगा

● दुनिया में जब आए हैं तो जीना ही पड़ेगा
● ये शाम की तन्हाईयाँ ऐसे में तेरा गम

Wednesday, February 2, 2022

हवा आज कुछ ठीक होगी तो जाने

 

               ग़ज़ल

हवा आज कुछ ठीक होगी तो जाने,
बहुत बदले हैं हमने अपने ठिकाने ।

यूँ ख़्वाबों की अपने तो परवाज होगी,
लगे थे जो सदमात उनको भुलाने ।

सदाकत भी भूले रफ़ाक़त भी भूले,
सभी भूलें हैं हम पुराने जमाने ।

कभी हादसों में हुआ इश्क़ लेकिन,
मिलेंगे तड़प कर गले अब लगाने ।

कभी होगी पतझड़ कभी फिर बहारें,
मुहब्बत में रिश्ते सभी हैं निभाने ।

फ़क़त हम अज़ीयत में जीये अभी तक,
चलो अब उजालों अँधेरा छुपाने ।

हुई शादमानी मिला हमसफ़र जो,
मुहब्बत चली अब हमें आजमाने ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
122 122 122 122
★★★
सदमात= गम ही गम
परवाज़=उड़ान
सदाकत=सच्चाई
रफाकत=मेलजोल
अज़ीयत= तकलीफें
शादमानी= खुशी, प्रसन्नता
★★★★★


Monday, January 31, 2022

अगर शोहरत यहाँ इंसान की बदनाम हो जाए

..
अगर शोहरत यहाँ इंसान की बदनाम हो जाए,
तो हक में जो करोगे बात वो इल्जाम हो जाए  ।

मुझे ग़म ये नहीं मुझको यहाँ पढता नहीं कोई,
मेरी चाहत मेरा ये ग़म कोई सर-ए-आम हो जाए।

ये उसकी जुल्फों के सदके लिखें मैंने बहुत नग्में,
मगर हर बार देखो ये कलम नीलाम हो जाये ।

कभी तो चूम ले मुझको मेरे जज़्बात की खातिर,
न जाने किस घडी इस ज़िन्दगी की शाम हो जाए ।

मेरी चाहत के मैं दीया बनूँ और वो बने बाती ,
मगर डर है जमाने का न ये नाकाम हो जाए ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
1222 1222 1222 1222


Friday, January 28, 2022

इतनी करो भी हमसे शरारत न यूँ कभी

...

इतनी करो भी हमसे शरारत न यूँ कभी,
आँखों से उठ ही जाए शराफत न यूं कभी |

देखे, जो चांदनी में, नहाया तेरा बदन,
हो जाए शह्र में ये बगावत न यूँ कभी |

वो चाँद जब फलक से कभी इस तरह झुके,
देखी है इस तरह की, इबादत न यूँ कभी |

आओ, चलें चमन से, कहीं दूर, गुलबदन,
ये चाँदनी, करे वो, ख़िलाफ़त न यूँ कभी |

चर्चा तेरी जफ़ाओं, का ये शह्र ढो रहा,
लगने लगे ये दिल में अदालत न यूँ कभी |

हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2121 1221 212

https://www.facebook.com/167070936684712/posts/989831204408677/

6th Oct 2015 edited

Tuesday, January 25, 2022

छलक कर आंखों से अपनी कहीं सागर न बन जाऊँ



छलक कर आंखों से अपनी कहीं सागर न बन जाऊँ,
न दिल को चोट दो इतनी कहीं पत्थर न बन जाऊँ।

यूँ जुल्फों को गिरा कर तुम मुझे बेहोश न कर दो,
तो फिर गुज़रे पलों का ख़ुद मैं इक मंज़र न बन जाऊँ ।

ज़माने की हदों को तोड़ निगाह-ए-नाज़ से देखो,
मगर डर है मुहब्बत का कहीं रहबर न बन जाऊँ।

कशिश रुखसार पे इतनी कि देखें तो हुए घायल,
कहीं मैं वक़्त से पहले तेरा दिलबर न बन जाऊँ ।

मैं ज़िंदा हूँ कि शायद तुम कभी मिल जाओगे मुझको,
फनां होंगी उमीदें तो दिल-ए-मुज़्तर न बन जाऊँ ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
1222 1222 1222 1222
25 जनवरी 22


निगाह-ए-नाज़=प्यार भरी नज़र
दिल-ए-मुज़्तर=व्याकुल, बैचेन

Sunday, January 23, 2022

आँगन में मेरे है जो शज़र तुमको इससे क्या

आँगन में मेरे है जो शज़र तुमको इससे क्या,
उजड़ेगा इससे मेरा ही घर तुमको इससे क्या ।

रहबर भी मिल सका न कोई इतनी भीड़ में, 
मुश्किल से कट रहा है सफ़र तुमको इससे क्या ।

माँ-बाप बेच कर थे मकाँ तुमको दे गए,
दर दर भटक रहे वो इधर तुमको इससे क्या ।

किस दर्द से गुजरता है शब्दों से खेलकर,
शायर करे कमाल मगर तुमको इससे क्या ।

दीवार ग़ल्त-फहमी की तुमने जो की खड़ी,
बिछुड़ा था मेरा लखत-ए-जिगर तुमको इससे क्या ।

टुकड़ों में बँट गया था जिगर माँ का पल में यूँ,
बेटी चली जो छोड़ पिहर तुमको इससे क्या ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2121 1221 212

ठंडी हवा का झोंका था आकर चला गया,

ठंडी हवा का झोंका था आकर चला गया,
इक मौसमी बहार लुभाकर चला गया ।

तूफाँ में फँस गया था समंदर के बीच में,
हो जाऊँगा फ़ना यूँ रुलाकर चला गया ।

रोया था कितनी बार भँवर के मैं जाल में,
लेकिन ख़ुदा किनारा दिखाकर चला गया ।

मुझको पता तूफाँ की हक़ीक़त का चल गया,
कीमत यूँ ज़िन्दगी की बताकर चला गया ।

फितरत वो ज़लज़ले की यहाँ थी भी इस तरह,
मकसद वो ज़िन्दगी के जलाकर चला गया ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2121 1221 212

Thursday, January 20, 2022

जब भी चाहो ये मुहब्बत को निभाना लेकिन


जब भी चाहो ये मुहब्बत को निभाना लेकिन,
पर तू मंदिर न वो मस्ज़िद को भुलाना लेकिन ।

बीच मझधार भँवर में भी फँसी कश्ती अगर,
गर खुदा सच में है देखेगा बचाना लेकिन ।

बे-वफाओं से तू जितनी भी मुहब्बत कर ले,
वो न भूलेंगे कभी दिल को दुखाना लेकिन ।

जिसके जज़्बात-ओ-खयालात में नफ़रत शामिल,
ज़ख़्म अपने न कभी उसको दिखाना लेकिन ।

लज़्ज़त-ए-इश्क़ से सरशार अगर हो तुम भी,
अपने अश्क़ों को न रुकने को मनाना लेकिन ।

हुस्न की ताब कोई दिल को लुभाए तेरे,
अपनी धड़कन न धड़कने से छुपाना लेकिन ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1122 1122 22(112)
21 जनवरी 22
जज़्बात-ओ-ख्यालात= भावनाएं और विचार
ताब=ताप, गर्मी
लज़्ज़त-ए-इश्क़=प्रेम और आनंद
सरशार=लबरेज़

Wednesday, January 19, 2022

आसमाँ बादल बिना नाशाद है


आसमाँ बादल बिना नाशाद है,
चाँदनी फिर चाँद की आज़ाद है । 

जब भी मौसम से ख़िज़ाँ जाने लगे,
तब समझना अब फ़िज़ा आबाद है ।

गर इबादत में बहाए अश्क़ जो,
वो ख़ुदा को इंसाँ की फरियाद है ।

जो मुहब्बत तोड़ धागा खो गई,
ज़िंदगी उसकी फ़क़त नाशाद है ।

खुदकशी को हो गया मजबूर वो,
शख्स वो जो प्यार में बर्बाद है ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 2122 212
20 जनवरी 22
नाशाद"=दुःखी, नाखुश।

Tuesday, January 18, 2022

सभी ने देखा है अब ख़ौफ़ इक उसकी निगाहों में

सभी ने देखा है अब ख़ौफ़ इक उसकी निगाहों में,
यकीनन राज़ है इसका उसी के ही गुनाहों में ।

कभी वो दिन थे फिक्र-ए-रंज था उसको नहीं कोई,
न जाने क्या हुआ रहता है अब ग़म की पनाहों में ।

वो टूटा अपनों के ज़ख़्मों से लगता नीम पागल अब,
नहीं दिखता बचा अब कोई उसके खैर-ख़्वाहों में ।

ये नफ़रत बढ़ गयी शायद दयार-ए-इश्क़ में इतनी,
उड़ीं हैं रातों की नींदे जो उसकी ख़्वाब-गाहों में ।

तसव्वुर में भी उसके तिलमिलाहट हो रही इतनी,
असर देखा है उठता दर्द हमने उसकी आहों में ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
1222 1222 1222 1222

दयार-ए- इश्क़= प्यार की दुनियाँ
ख़्वाब-गाह=शयन-कक्ष

Monday, January 17, 2022

जो तू उठा दे मुझे रंजो ग़म से पार यहाँ



जो तू उठा दे मुझे रंजो ग़म से पार यहाँ,
मिले सकून तुझी से मुझे करार यहॉं।

कभी निगाह ने तेरी था मार डाला मुझे,
तुझी से दर्द मिला अर मिला ख़ुमार यहाँ ।

मिटा दे ज़ुल्म तू उस दिल की है तलाश मुझे,
महक उठे ये फ़िजां अर चले बहार यहाँ ।

तू कौन शख्स सर-ए-अंजुमन कहा था मुझे,
पुकारता जो मुझे हँस के बार बार यहाँ।

असीम दर्द लिए घूमता हूँ सीने में अब,
दिए हैं ग़म भी तो तूने मुझे हज़ार यहाँ ।

किसी को भी न मिला वो फलक जो मुझको मिला,
शब-ए-विसाल की बातें करे था यार यहाँ ।

यकीं मैं कैसे करूँ 'हर्ष' इन लकीरों पर,
मुहब्बतों में मिला मुझको अश्क़बार यहाँ ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
1212 1122 1212 22(112)
18 जनवरी 22
शब-ए-विसाल=मिलन की रात
अश्क़बार=रोने वाला
सर-ए-अंजुमन=भरी सभा में

Sunday, January 16, 2022

जब से हुई है तुमसे मुलाकात शाम की



जब से हुई है तुमसे मुलाकात शाम की,
पढ़ता हूँ अब मैं गज़लें फ़क़त तेरे नाम की ।

शोहरत को दी न मैनें तवज़्ज़ो भी आज तक ,
चाही फ़क़त ज़रा सी मुहब्बत कलाम की ।

नफ़रत से हो रहे हैं ज़रर रिश्तों में भी अब,
उल्फ़त की रह गयी है ये तस्वीर नाम की ।

पलकों में कैसे जज़्ब करूँ अश्क़ ऐ खुदा,
यादें रहीं न काबू फ़क़त इक वो शाम की ।

रिश्तों में आ चुकी थीं दरारें भी इस तरह
होती नहीं है शाम बिना कोई जाम की ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2121 1221 212
17 जनवरी 22

ज़रर=नुकसान
जज़्ब= सोख

Saturday, January 15, 2022

दर्द-ए-दिल पर किसकी हैं परछाइयाँ


दर्द-ए-दिल पर किसकी हैं परछाइयाँ,
साथ जिनके इतनी हैं गहराइयाँ ।

ज़िन्दगी का यूँ सफ़ऱ मुश्किल हुआ,
इतनी रंजिश, इतनी हैं रुसवाईयाँ।

हो रही खामोश अब ये ज़िन्दगी,
ख़्वाब बन रह जायेंगी शहनाइयाँ।

ज़ख़्म हर पल कर रहे छलनी जिगर,
जिस सफ़र पर इतनी थीं रानाइयाँ ।

दर्द-ए-ग़म का है ठिकाना 'हर्ष' जब,
हमसफर जब से हुईं रुसवाईयाँ ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
"तुम न जाने किस जहाँ में खो गए"
2122 2122 212
15 जनवरी 22

रानाइयाँ=सुंदरता
रुसवाईयाँ=बेइजती ,बदनामी, अपमान और दुर्गति , निंदा, जिल्लत 

Friday, January 14, 2022

हुस्न होगा शबाब भी होगा


हुस्न होगा शबाब भी होगा,
सुर्ख चेहरे पे ताब भी होगा ।

ज़ुल्म रुख पे सितम जो ढाते हैं,
सोचता माहताब भी होगा ।

इश्क़ हो तल्ख़ तो समझ लेना,
प्यार गर है इताब भी होगा ।

प्यार इज़हार जब करे कोई,
हाथों में इक गुलाब भी होगा ।

हमसफ़र बेवफ़ा जो दिखने लगे,
आंखों में इज़्तिराब भी होगा ।

इश्क़ में है अगन तो उट्ठेगी,
आग गर उसमें आब भी होगा ।

मुफ़लिसों पर न ज़ुल्म ढा ऐसे, 
गर ख़ुदा है हिसाब भी होगा ।


हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1212 22 (112)
15 जनवरी 22
★★★
इज़्तिराब=बैचेन, व्याकुल
इताब=गुस्सा,रोष
ताब= ताप, गर्मी
आब=पानी
अगन=तपिश

जो भी मिला गुलाब किताबों में रख लिया

 

जो भी मिला गुलाब किताबों में रख लिया,
है फर्क बस कि तुमने हिसाबों में रख लिया ।

हमको तो दर्द-ए-शौक-ओ-तमन्ना भी खूब थी,
तुमसे मिला था जो भी हिज़ाबों में रख लिया ।

अम्न-ओ-सकून चैन यहाँ तब से खो गया,
चेहरा उन्होंने जब से नकाबों में रख लिया ।

ये डर है तुमको खो न दें इस ख्याल से,
लम्हात था जो कीमती ख्वाबों में रख लिया ।

मीठी ज़ुबाँ का हमपे हुआ इस कदर असर,
लहज़ा मिज़ाज़ तुमसा जवाबों में रख लिया ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2121 1221 212
14 जनवरी 22

Tuesday, January 11, 2022

हो रही रुख़्सती अब मेरी धाम को

 

हो रही रुख़्सती अब मेरी धाम को,
फिर चढ़ा फूल जितने चढ़ें शाम को ।

चल दिया पाँव उल्टे मैं हो बेवफा,
जी रहा अब तलक जो तेरे नाम को ।

रो रहे चाँद तारे फलक पर सभी,
दे रहा हूँ परख ले तू इस दाम को ।

लाश पर जो भी करना ये मातम मेरा,
पर्दा कर लेना पीना हो जब जाम को ।

कैसा किरदार मुझको ये तूने दिया,
ऐ ख़ुदा कैसे निपटाऊँ इस काम को ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
212 212 212 212 
12 जनवरी 22

तेरी सोहबत में दिल ये संभल जाएगा

तेरी सोहबत में दिल ये संभल जाएगा,
कर यकीं अब नहीं तो ये जल जाएगा ।

देख लेना कभी इश्क़ इन आँखोँ में,
थोड़ी चाहत दिखाना मचल जाएगा ।

तू ख़फ़ा है मुझे ये पता था मगर,
पर यकीं ये नहीं था बदल जायेगा ।

दिल में खामोशियाँ अब हैं पलने लगीं, 
थोड़ा बहला देगा ये उछल जाएगा ।

हमसफ़र छोड़ मेहमान बन तू मुझे,
कैसे कर लूँ यकीं मुझको छल जाएगा ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
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Friday, January 7, 2022

जब कभी दिल किसी का दुखाया करो




जब कभी दिल किसी का दुखाया करो,
दो कदम ग़म के भी तो बढ़ाया करो ।

सिरफिरा भी कहे गर वो पागल भी फिर,
ऐसे नख़रे भी फिर तुम उठाया करो ।

जो कहा ही नहीं, उसने वो भी सुना,
फिर तो किस्मत पे आँसू बहाया करो ।

उम्र भर तुम ख़ताओं में मशगूल थे,
अपने दिल को भी ये तुम बताया करो ।

बेवफा निकली वो फिर कहा उसने ये,
धीरे-धीरे उसे तुम भुलाया करो ।

ग़म का है या खुशी का मगर कुछ तो है,
ये सफ़ऱ ज़िन्दगी का निभाया करो ।

जब चले जिक्र तेरा किसी बज़्म में,
दिल धड़कता तेरा भी सुनाया करो ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
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बुझ गए जब दिए तो अँधेरा हुआ

बुझ गए जब दिए तो अँधेरा हुआ, 
चाँद निकला तो समझा सवेरा हुआ ।

ख़्वाब मेरे लिए उसकी आँखों में था,
टूटा, उसका हुआ अर न मेरा हुआ ।

इक चराग-ए-मुहब्बत जले दिल में फिर,
इसलिए नाम उसका उकेरा हुआ ।

फिर मुहब्बत में ऐसी चली आँधियाँ,
ज्यूँ समंदर में तूफाँ तरेरा हुआ ।

कल्पनाओं में इतनी उड़ाने भरीं,
हुस्न ऐसा था उसने बिखेरा हुआ ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
212 212 212 212

Thursday, January 6, 2022

कहीं चाहत न उसकी रूठ कर सर-ए-आम हो जाये

कहीं चाहत न उसकी रूठ कर सर-ए-आम हो जाये,
खुला दिल है खुला जज़्बात न इल्ज़ाम हो जाये ।

ग़ज़ल लिखता है वो या ख़्वाब लिखता महज़बीनों के,
मुझे डर है हसीनों में न वो बदनाम हो जाए  ।

बिलख़ते उसके अरमाँ मिल रही है ये सज़ा कैसी,
मिले गर आंखों से पीने को फिर आराम हो जाये ।

मरीज-ए-इश्क़ का दुनियाँ में लगता है नहीं कोई,
कहीं ये इश्क़ दुनियाँ से न अब नीलाम हो जाये ।

मेरे नग्मों की कीमत घट रही लिख-लिख सफीनों पर,
ज़ुबाँ दे दे कोई हर नग्में को वो जाम हो जाये ।

किसे होगा न अपने हुस्न पर क्यूँ नाज़ इतना जब,
किसी के वास्ते ये ज़िन्दगी पैगाम हो जाये ।

तसव्वुर में अगर न दिल लगे तो फिर चले आना,
कहा उसने मुहब्बत अबकि न नाकाम हो जाये ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
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Wednesday, January 5, 2022

खूबसूरत ग़ल्त-फहमी हो गयी

खूबसूरत ग़ल्त-फहमी  हो गयी,
बीज दिल में इक हसीना बो गयी  ।

क्यूँ उसे अब ढूँढता हूँ दर-बदर,
क्या मुक़द्दर में मुहब्बत हो गयी ।

ग़म खुशी के रंगों को बस देखकर,
मेरे हाथों की वो रेखा खो गयी ।

कर दिया इज़हार उसने प्यार का,
फिर अचानक मेरी धड़कन सो गयीं ।

रोशनी बुझने लगी दिए कि अब,
मेरे दिल से जो निकल के वो गयी ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
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चाँद जब तक फलक पर नुमाया नहीं

चाँद जब तक फलक पर नुमाया नहीं,
रुख से जुल्फों को उसने हटाया नहीं ।

उसको अहसास था मेरे ज़ख़्मों का पर,
अश्क़ पत्थर ने इक भी बहाया नहीं ।

मुफ़लिसी रिश्तों में बढ़ गयी इस कदर,
दिल धड़कता रहा पर बताया नहीं ।

मेरी नज़्मों ने उसको पुकारा बहुत,
थी कसक उसको भी पर रुलाया नहीं ।

सर झुका के मिला था मैं उसको मगर,
क्यूँ उठा के वो खंजर चलाया नहीं ।

अर्थी मेरी चली अर्थी उसकी चली,
पर्दा फिर भी किसी ने उठाया नहीं ।

दर्द सह कर भी इतना रहम दिल था 'हर्ष'
दिल दिया भी मगर दिल लगाया नहीं।

हर्ष कुमार 'हर्ष'
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घाटियों के बीच इक वो शह्र है

घाटियों के बीच इक वो शह्र है,
आदमी रहते जहाँ अब कहर है ।

ज़िन्दगी कब तक उन्हें रौंदेगी अब,
कब तलक ये जंग उनकी सहर है ।

सरहदों पर जंग जारी है अभी,
जानें घाटी में ये कैसी लहर है ।

लोग जो बे-घर कभी थे हो गए,
दिल में उनके जाने कितना ज़हर है ।

जाने क्यूँ छेड़ी है मैनें ये ग़ज़ल,
कैसा मंज़र जाने कैसी बह्र है ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
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Tuesday, January 4, 2022

यूँ ही ज़िंदगी पर असर देख लेना

यूँ ही ज़िंदगी पर असर देख लेना,
कॅरोना का अब तुम गदर देख लेना ।

तबाही का आलम चलाया है जिसने,
नए साल उसका हुनर देख लेना ।

न अपनी खबर है न दुनियाँ की चिंता,
सियासत के वादे इधर देख लेना ।

यही सिलसिला अब यूँ  चलता रहेगा,
गदर करने वालों का सफ़ऱ देख लेना ।

है इतनी शिकायत मुझे अब खुदा से,
अँधेरों में जाएँ किधर देख लेना ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
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