Thursday, January 20, 2022

जब भी चाहो ये मुहब्बत को निभाना लेकिन


जब भी चाहो ये मुहब्बत को निभाना लेकिन,
पर तू मंदिर न वो मस्ज़िद को भुलाना लेकिन ।

बीच मझधार भँवर में भी फँसी कश्ती अगर,
गर खुदा सच में है देखेगा बचाना लेकिन ।

बे-वफाओं से तू जितनी भी मुहब्बत कर ले,
वो न भूलेंगे कभी दिल को दुखाना लेकिन ।

जिसके जज़्बात-ओ-खयालात में नफ़रत शामिल,
ज़ख़्म अपने न कभी उसको दिखाना लेकिन ।

लज़्ज़त-ए-इश्क़ से सरशार अगर हो तुम भी,
अपने अश्क़ों को न रुकने को मनाना लेकिन ।

हुस्न की ताब कोई दिल को लुभाए तेरे,
अपनी धड़कन न धड़कने से छुपाना लेकिन ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1122 1122 22(112)
21 जनवरी 22
जज़्बात-ओ-ख्यालात= भावनाएं और विचार
ताब=ताप, गर्मी
लज़्ज़त-ए-इश्क़=प्रेम और आनंद
सरशार=लबरेज़

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