बुझ गए जब दिए तो अँधेरा हुआ,
चाँद निकला तो समझा सवेरा हुआ ।
चाँद निकला तो समझा सवेरा हुआ ।
ख़्वाब मेरे लिए उसकी आँखों में था,
टूटा, उसका हुआ अर न मेरा हुआ ।
इक चराग-ए-मुहब्बत जले दिल में फिर,
इसलिए नाम उसका उकेरा हुआ ।
फिर मुहब्बत में ऐसी चली आँधियाँ,
ज्यूँ समंदर में तूफाँ तरेरा हुआ ।
कल्पनाओं में इतनी उड़ाने भरीं,
हुस्न ऐसा था उसने बिखेरा हुआ ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
212 212 212 212
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