Friday, January 7, 2022

बुझ गए जब दिए तो अँधेरा हुआ

बुझ गए जब दिए तो अँधेरा हुआ, 
चाँद निकला तो समझा सवेरा हुआ ।

ख़्वाब मेरे लिए उसकी आँखों में था,
टूटा, उसका हुआ अर न मेरा हुआ ।

इक चराग-ए-मुहब्बत जले दिल में फिर,
इसलिए नाम उसका उकेरा हुआ ।

फिर मुहब्बत में ऐसी चली आँधियाँ,
ज्यूँ समंदर में तूफाँ तरेरा हुआ ।

कल्पनाओं में इतनी उड़ाने भरीं,
हुस्न ऐसा था उसने बिखेरा हुआ ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
212 212 212 212

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