Sunday, August 29, 2021

अगर दिल पर मेरे उसका कभी इख्तियार हो जाता

 अगर दिल पर मेरे उसका कभी इख्तियार हो जाता,
ये हस्ती तक बिखर जाती मुझे इंतज़ार हो जाता |

मैं खुद अपनी निगाहों से गिरा और ये भी मुमकिन था,
कभी मैं खोल देता दिल, वो फिर राजदार हो जाता |

ये तो अच्छा हुआ वो रूठ कर यूँ ही चल दिए मुझसे,
अगर तीरे नज़र चलता तो दिल आर-पार हो जाता |

अमानत थी किसी की फिर भी इस दिल को रखना काबू में,
कशिश इतनी थी आँखों में ये दिल तार-तार हो जाता |

बिछुड़ के रो चुका हूँ बे-वजह वो तो दिल था बेगाना,
न पगलाता ये दिल मेरा तो मैं होशियार हो जाता |

_____हर्ष महाजन 'हर्ष'
09 मार्च 2016

Non standard Behr.
1222 1222 1221 2122 2

Thursday, August 26, 2021


अब तेरा मेरा जाने बसर है कि नहीं है,
जो घाव दिए तूने ख़बर है कि नहीं है ।

महफ़िल से अचानक ही अधर में चले जाना,
देखो तो ग़ज़ल में वो असर है कि नहीं है | 

छलनी जो किया तूने हुआ कैसे मैं जालिम, 
अब सोच कोई मुझमें कसर है कि नहीं है |

इतना था हुआ रंज मुझे खुदकशी चुनी, 
सोचा न समंदर में भँवर है कि नहीं है |  

मैं तुझसे परेशान हुआ अश्क़ों से ख़ारिज़,  
जानू न मुकद्दर में ठहर है कि नहीं है |

________हर्ष महाजन 'हर्ष' "©
©15 जून 2016 फेसबुक
बहरे हज़ज़ मुसम्मन अखरब महफूफ महजूफ 
221 - 1221 - 1221 - 122

Monday, August 16, 2021

आबरू वतन की आज यूँ बची कि क्या कहें

 

कारगिल युद्ध, जिसे ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है, भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के करगिल जिले में हुए सशस्त्र संघर्ष का नाम है।


आबरू वतन की आज यूँ बची कि क्या कहें,
फौज़ अपनी कारगिल में यूँ लड़ी कि क्या कहें ।

दुश्मनों के काफिले जो हिन्द की ज़मीं पे थे,
फौज़ ए हिन्द बन के शोला यूँ लड़ी के क्या कहें ।

दहले थे वो लाडलों की माँओ के तो दिल ही थे,
देख कर तिरंगे में वो यूँ खड़ी कि क्या कहें ।

एक तरफ जंग कारगिल की दूजी थी सियासती,
जंग ये सियासतों ने यूँ लड़ी कि क्या कहें ।

दुश्मनों के संग दोस्ती निभा रहा था हिन्द,
दोस्ती ये छल के महँगी यूँ पड़ी कि क्या कहें ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
212 1212 1212 1212
"मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या कसूर है"


आसतीं में सांप है अब जाने कितने

 

आसतीं में सांप है अब जाने कितने,
हम रहे बेख़ौफ़ यूँ बेगाने कितने ।

अपने ही हमराज अब समझाने निकले,
चोट खाके भी हैं हम अनजाने कितने ।

नफ़रतों के साये में हम तन्हा तन्हा,
रिश्ते लगते हो गए वीराने कितने ।

साजिशों को हादसा समझा किये हम,
बन गए अनजाने में अनजाने कितने ।

पर्दा सरका आँख से जब हरसु जानिब,
टूटे सब रिश्ते बने अफसाने कितने ।

रौशनी जब मांग ली जलते दियों से,
वो बहाने यूँ लगे बरसाने कितने ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 2122 2122
"छोड़ दो आँचल ज़माना क्या कहेगा"


Saturday, August 7, 2021

गल्त-फ़हमी थीं बढीं अर फासले बढ़ते रहे,

गल्त-फ़हमी थीं बढीं अर फासले बढ़ते रहे,
हम मुहब्बत में हैं लेकिन दुश्मनी करते रहे |

दिल तो था मजबूर लेकिन आँखे आब-ए-चश्म थीं,
पर कदम बढ़ते रहे उनके सितम चलते रहे |

हर सितम आखों में उनकी आइने सा यूँ छला,
हम भी पहलू में दिया बन जलते अर बुझते रहे |

इश्क में खुद शूल बन वो सीने में चुभने लगे,
फिर वही ग़म ज़िंदगी में घुँघरू बन बजते रहे |

कैसे लिख दें दास्ताँ अपने ही लफ़्ज़ों में सनम,
ग़म समंदर हो चले अब दिल में जो पलते रहे |

_______हर्ष महाजन 'हर्ष'

आब-ए-चश्म = आंसू

बहरे रमल मुसम्मन महजूफ
2122-2122-2122-212



सर-ए-आम यूँ ही जुल्फ संवारा न कीजिये


सर-ए-आम यूँ ही जुल्फ संवारा न कीजिये
बे-मौत हमको हुस्न से मारा न कीजिये |

लहराते हैं यूँ गेसू कि दिल भी मचल उठे,
काँधे को यूँ अदा से उसारा न कीजिये |

रुखसार पर परीशां हो बरपा रहीं कहर,
ये नागिनों सी ज़ुल्फ़ अवारा न कीजिये |

कुंडल बनी है लट तिरी आँखें हैं छल रहीं,
आ आ के ख्वाब में यूँ इशारा न कीजिये |

जब झटकते हो ज़ुल्फ़ मेरी शायरी बने,
अब बाँध इनको जाम तो खारा न कीजिये |

ये ज़ुल्फ़ यूँ गिराईं कि दिल ही दहल उठा,
है इल्तिजा ये भूल दुबारा न कीजिये |

हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2121 1221 212


©1988

मेरा दिल मुझसे बदगुमा लेकिन


मेरा दिल मुझसे बदगुमां लेकिन,
ये तो कातिल है रहनुमां लेकिन |

दिल है रंगीन महफ़िलों पे फ़िदा,
हरसूं ज़ख्मों के हैं निशां लेकिन |

कितने हैं दर्द अश्क कहते हैं ये,
दिल में रोशन है इक समां लेकिन |

मैं भी सदमें में संग रोया बहुत, 
मुझपे इतना था मेहरबां लेकिन |

कितने ही दर्द इश्क में था लिए,
बंद है दिल की अब जुबां लेकिन |

आज जाने की बात मत करना,
अश्क रुकते न दर्द भी लेकिन |

_______हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1212 22(112)
"ज़िक्र होता है जब कयामत का"