Saturday, August 7, 2021

मेरा दिल मुझसे बदगुमा लेकिन


मेरा दिल मुझसे बदगुमां लेकिन,
ये तो कातिल है रहनुमां लेकिन |

दिल है रंगीन महफ़िलों पे फ़िदा,
हरसूं ज़ख्मों के हैं निशां लेकिन |

कितने हैं दर्द अश्क कहते हैं ये,
दिल में रोशन है इक समां लेकिन |

मैं भी सदमें में संग रोया बहुत, 
मुझपे इतना था मेहरबां लेकिन |

कितने ही दर्द इश्क में था लिए,
बंद है दिल की अब जुबां लेकिन |

आज जाने की बात मत करना,
अश्क रुकते न दर्द भी लेकिन |

_______हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1212 22(112)
"ज़िक्र होता है जब कयामत का"

2 comments:

  1. वाह ... हर शेर गज़ब का ... रहनुमा कातिल है । होता है .....

    कितने ही दर्द इश्क में था लिए,
    बंद है दिल की अब जुबां लेकिन |
    बहुत खूब 👌👌👌

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    1. आपकी ज़र्रानावाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय संगीता जी
      सादर

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