Saturday, May 30, 2020

मेरी हसरत है तू छोड़ा तो किधर जाओगे

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मेरी हसरत तू है, बिछुड़ोगे किधर जाओगे,
दिल में उल्फ़त है मेरे इतनी निखर जाओगे ।

जब भी उट्ठेगा भँवर दिल में तेरी यादों का,
है यकीं ख़्वाबों में तुम खुद ही उतर जाओगे ।

ये नसीबा है तेरा मेरी वफ़ा की ख़ातिर,
वरना मौसम की तरह यूँ ही गुज़र जाओगे ।

अपने किरदार को तुम जल्द सँभालो वरना,
इस ज़माने की निग़ाहों से उतर जाओगे ।

यूँ हक़ीक़त में न ख़्वाबों से गिराना मुझको,
मैं गिरा दूंगा जो नज़रों से किधर जाओगे ।

कोई फ़रियाद तेरे दिल में अगर है तो कहो,
पाँव रक्खोगे दो कश्ती में बिख़र जाओगे ।

ज़ुल्म देखेगा ज़माना भी मुहब्बत  पे सितम,
मुझसे उल्फ़त का सफ़र छोड़ अगर जाओगे ।

--हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1122 1122 22
पाँव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी ।

इश्क़ में गर आहें खाली जाएंगी

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इश्क़ में गर आहें खाली जाएंगी
कुछ कमाने फिर संभाली जायेंगी ।

प्यार की वो जंग छू ले जब फलक,
मौत तक कसमें उठा ली जाएंगी ।

बेवफाई का कभी दिल में हो शक,
उल्फतें दिल की बिठा ली जाएंगी ।

जब गमों की बाढ़ सी आने लगे,
कश्तियाँ दिल से निकाली जाएंगी ।

साजिशें गर उठ चलीं खुद इश्क़ में,
रंजिशें फिर जल्द हटा ली जाएंगी ।

टूट कर जिसको भी चाहा हो अगर,
मंज़िलें ख़्वाबों में पा ली जाएंगी ।

जब चमन दिल का खिजां होने लगे,
हसरतें दिल की खंगाली जाएंगी ।

आखों से दिल का सफर करना हो जब,
नावेँ अश्क़ों में बहा ली जाएंगी ।

गर थमेगा प्यार का लंबा सफ़ऱ
अर्थी में यादें निकाली जाएंगी ।

 हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 2122 212
दिल के अरमां आंसुओं में बह गए

Friday, May 29, 2020

कब तलक नाज़ उठाएगा ज़माना तेरा

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कब तलक नाज़ उठाएगा ज़माना तेरा,
अब तो भाता भी नहीं ज़ुल्फ़ गिराना तेरा ।

मैं भी ख़ामोश हूँ अब देख अदाएं तेरी,
लब पे आता ही नहीं कोई फ़साना तेरा ।

याद आती है तेरे खुश्क लबों की जुम्बिश,
मुझसे जब पहली दफा हाथ मिलाना तेरा ।

वो भी था वक़्त हवाओं में तेरे गीत चले,
देख बदली है फ़ज़ा और दिवाना तेरा ।

यूँ महब्बत के नशे में ये जलन  ठीक नहीं,
मेरा हर यार बना  ठौर ठिकाना तेरा ।

हर्ष महाजन
2122 1122 1122 22
दिल की आवाज़ भी सुन मेरे फ़साने पे न जा

Friday, May 1, 2020

मेरे दिल का कोई नवाब आ गया

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मेरे दिल का कोई नवाब आ गया,
पुराने ख़तों का हिसाब आ गया ।

जिसे अब तलक मैं था समझा नहीं,
वो ले के पुरानी किताब आ गया ।

मुहब्बत ने पाई बुलंदी मगर,
क्युँ बहती नदी में सैलाब आ गया  ।

यूँ बिखरा हूँ मैं फूल बनकर अभी,
सुहाना मुझे याद ख़्वाब आ गया।

है अपना कोई दुश्मनों में यहाँ,
लगा कांटों में इक गुलाब आ गया ।

-हर्ष महाजन 'हर्ष'
122 122 122 12
तुम्हारी नज़र क्यूँ ख़फ़ा हो गयी ।