Wednesday, November 11, 2020

यार जब लौट के दर पे मेरे आया होगा,

 

ग़ज़ल



यार जब लौट के दर पे मेरे आया होगा,

आख़िरी ज़ोर मुहब्बत ने लगाया होगा ।


याद कर कर के वो तोड़ी हुई क़समें अपनी,

आज अश्कों के समंदर में नहाया होगा ।


ज़िक्र जब मेरी ज़फ़ाओं का किया होगा कहीं,

ख़ुद को उस भीड़ में तन्हा ही तो पाया होगा ।


दर्द अपनी ही अना का भी सहा होगा बहुत,

फिर से जब दिल में नया बीज लगाया होगा ।


जब दिया आस का बुझने लगा होगा उसने,

फिर हवाओं को दुआओं से मनाया होगा ।


----हर्ष महाजन 'हर्ष'

2122 1122 1122 22(112)

होके मज़बूर मुझे उसने भुलाया होगा ।

मुहब्बत की जब इंतिहा कीजियेगा,

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मुहब्बत की जब इंतिहा कीजियेगा,

निगाहों से तुम भी नशा कीजियेगा ।


सफ़र दिल से दिल तक लगे जब भी मुश्किल ,

दुआओं की फिर तुम दवा कीजियेगा ।


नज़र ज़ुल्फ़ों पे गर टिकें ग़ैरों की तो,

यूँ आँखों में नफ़रत अदा कीजियेगा ।


मुझे सोच, हों चश्म, नम तो समझना,

ये जज़्बात अपने अता कीजियेगा ।


ये है इल्तिज़ा मर भी जाऊँ तो इतनी,

ख़ुदा से न तुम ये गिला कीजियेगा ।


मेरी आरज़ू , बंदगी तुम समझ कर,

अदा फिर उम्मीद-ए-वफ़ा कीजियेगा ।


निगाहों में मेरी फ़क़त तुम ही मंज़िल,

मुक़द्दर की अब इब्तिदा कीजियेगा ।



हर्ष महाजन 'हर्ष'

122 122 122 122

अज़ी रूठ कर तुम कहाँ जाइयेगा

मुझको हरसूं नशा सा रहता है


...

मुझको हरसूं नशा सा रहता है,

जैसे मुझमें खुदा सा रहता है ।


चाहतों का जो पूछो मुझसे कभी,

उनसे क्यूँ दिल जला सा रहता है ।


फिर भी रहता है ख़ौफ़ मुझमें क्यूँ ,

दिल भी ख़ुद से डरा सा रहता है ।


बोझ लगती हैं राहें भी अपनीं,

ज़ख्म गहरा हरा सा रहता है ।


जब भी नज़दीक होती मन्ज़िल तो,

दर्द भी फिर भला सा रहता है ।


----हर्ष महाजन 'हर्ष'

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