Sunday, February 25, 2018

बहका रहीं हैं उनकी अदाएँ तो क्या करें (तरही)



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बहका रहीं हैं उनकी अदाएँ तो क्या करें,
होने लगीं हैं हमसे खताएँ तो क्या करें ।

रुक-रुक के चल रहीं हैं समंदर में कश्तियाँ,
तूफाँ सी चल रहीं हैं हवाएँ तो क्या करें ।

मरने लगे गरीब यूँ ही अस्पताल में,
जब खत्म हो चुकी हों दवाएँ तो क्या करें ।

इतने मिले हैं ज़ख्म कि दिल छलनी हो गया,
काम आएँ न किसी की दुआएँ तो क्या करें ।

मिलजुल के हमने जितने किये आज तक सफर,
'अब मुस्करा के भूल न जाएँ तो क्या करें ।'

दुश्मन के घर भी जल रहे गर दोस्त के दीये,
यूँ भी बदल रहीं हों फ़ज़ाएँ तो क्या करें ।

हर्ष महाजन

221 2121 1212 212

गम पे उठी ग़ज़ल तो वो दिल में उतर गयी


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गम पे उठी ग़ज़ल तो वो दिल में उतर गयी,
खुशियों का ज़िक्र आया कयामत गुज़र गयी ।
इतनी थी खुशनसीब मेरी ज़िंदगी मगर,
इक प्यार की लकीर न जाने किधर गयी ।
वो छोटी- छोटी बातों पे रहने लगे खफा,
कहने लगे थे लोग कि किस्मत सँवर गयी ।
वो गैर सा हुआ मुझे अफसोस था मगर,
वो अजनबी हुआ मेरी दुनियाँ बिखर गयी ।
निकली जो आह दिल से असर कब कहां हुआ,
दिल से निकल के रूह के अंदर उतर गयी ।
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हर्ष महाजन

221 2121 1221 212

महफ़िल में तेरी लौट के आता नहीं कोई

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महफ़िल में फिर से लौट के आता नहीं कोई,
कानून बज़्म के भी निभाता नहीं कोई ।

कितने ही दौर चल चुके ग़ज़लों के अब तलक,
दीवानों सा क्युँ मस्ती में आता नहीं कोई ।

कुछ टोलियाँ बनीं हैं नशा खोरों की यहाँ,
पर शहरियों को तनिक सताता नहीं कोई ।

अब ज़िन्दगी में देख लीं तब्दीलियां बहुत,
पर फासलों का राग सुहाता नहीं कोई ।

अब हो रहीं बगावतें घर-घर में हर तरफ,
पर दिल में छिपी बात बताता नहीं कोई ।

--------------हर्ष महाजन

221 2121 1221 212

Tuesday, February 20, 2018

यूँ ही आंखों से बातें किया कीजिये

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यूँ ही आँखों से बातें किया कीजिये,
मेहरबाँ कुछ तो मुझ पे रहा कीजिये ।

हम तो नादान हैं प्यार में कुछ सनम,
कुछ ख़बर मेरे दिल की लिया कीजिये ।

ग़म की ग़ज़लें चलें अश्क़ तुम थाम कर,
लफ़्ज़ों का यूँ मुसलसल नशा कीजिये ।

गर ज़बाँ से मिले तुझको पास-ए-वफ़ा*,
दर्द को इश्क़ से फिर रफ़ा कीजिये ।

यूँ ही डरते हो बदनामी से शह्र में,
इश्क है तो मुकम्मिल किया कीजिये |

ग़म की गहराइयों से जो गुज़रो कभी,
अश्क़ गिरने से पहले पिया कीजिये ।

फ़ासला दरमियाँ गर हमारे रहा,
इश्क़ का फिर ख़ुदा से गिला कीजिये ।

गर जो आँखों से टपके नशा प्यार का,
रुख से बुर्के को फिर तुम ज़ुदा कीजिये ।

ये जुदाई तुझे गर लगे खुशनुमां,
बेझिझक मुझसे तर्क-ए-वफ़ा कीजिये ।

---हर्ष महाजन 'हर्ष'
बहरे-मुतदारिक मसम्मन सालिम
212 212 212 212
*पास-ए-वफ़ा=प्यार में वफ़ादारी का ध्यान रखना
**तर्क-ए-वफ़ा=End of faithfulness/relationship
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1) मेरे रश्के क़मर तू ने पहली नज़र 
जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया

2) हर तरफ़ हर ज़गह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी.