...
महफ़िल में फिर से लौट के आता नहीं कोई,
कानून बज़्म के भी निभाता नहीं कोई ।
कितने ही दौर चल चुके ग़ज़लों के अब तलक,
दीवानों सा क्युँ मस्ती में आता नहीं कोई ।
कुछ टोलियाँ बनीं हैं नशा खोरों की यहाँ,
पर शहरियों को तनिक सताता नहीं कोई ।
अब ज़िन्दगी में देख लीं तब्दीलियां बहुत,
पर फासलों का राग सुहाता नहीं कोई ।
अब हो रहीं बगावतें घर-घर में हर तरफ,
पर दिल में छिपी बात बताता नहीं कोई ।
--------------हर्ष महाजन
221 2121 1221 212
No comments:
Post a Comment