...
ग़म की ग़ज़लें चलें अश्क़ तुम थाम कर,
लफ़्ज़ों का यूँ मुसलसल नशा कीजिये ।
गर ज़बाँ से मिले तुझको पास-ए-वफ़ा*,
दर्द को इश्क़ से फिर रफ़ा कीजिये ।
यूँ ही डरते हो बदनामी से शह्र में,
इश्क है तो मुकम्मिल किया कीजिये |
ग़म की गहराइयों से जो गुज़रो कभी,
अश्क़ गिरने से पहले पिया कीजिये ।
फ़ासला दरमियाँ गर हमारे रहा,
इश्क़ का फिर ख़ुदा से गिला कीजिये ।
गर जो आँखों से टपके नशा प्यार का,
रुख से बुर्के को फिर तुम ज़ुदा कीजिये ।
ये जुदाई तुझे गर लगे खुशनुमां,
बेझिझक मुझसे तर्क-ए-वफ़ा कीजिये ।
---हर्ष महाजन 'हर्ष'
बहरे-मुतदारिक मसम्मन सालिम
212 212 212 212
*पास-ए-वफ़ा=प्यार में वफ़ादारी का ध्यान रखना
**तर्क-ए-वफ़ा=End of faithfulness/relationship
◆◆◆
1) मेरे रश्के क़मर तू ने पहली नज़र
जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया
2) हर तरफ़ हर ज़गह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी.
◆◆◆
यूँ ही आँखों से बातें किया कीजिये,
मेहरबाँ कुछ तो मुझ पे रहा कीजिये ।
हम तो नादान हैं प्यार में कुछ सनम,
कुछ ख़बर मेरे दिल की लिया कीजिये ।
कुछ ख़बर मेरे दिल की लिया कीजिये ।
ग़म की ग़ज़लें चलें अश्क़ तुम थाम कर,
लफ़्ज़ों का यूँ मुसलसल नशा कीजिये ।
गर ज़बाँ से मिले तुझको पास-ए-वफ़ा*,
दर्द को इश्क़ से फिर रफ़ा कीजिये ।
यूँ ही डरते हो बदनामी से शह्र में,
इश्क है तो मुकम्मिल किया कीजिये |
ग़म की गहराइयों से जो गुज़रो कभी,
अश्क़ गिरने से पहले पिया कीजिये ।
फ़ासला दरमियाँ गर हमारे रहा,
इश्क़ का फिर ख़ुदा से गिला कीजिये ।
गर जो आँखों से टपके नशा प्यार का,
रुख से बुर्के को फिर तुम ज़ुदा कीजिये ।
ये जुदाई तुझे गर लगे खुशनुमां,
बेझिझक मुझसे तर्क-ए-वफ़ा कीजिये ।
---हर्ष महाजन 'हर्ष'
बहरे-मुतदारिक मसम्मन सालिम
212 212 212 212
*पास-ए-वफ़ा=प्यार में वफ़ादारी का ध्यान रखना
**तर्क-ए-वफ़ा=End of faithfulness/relationship
◆◆◆
1) मेरे रश्के क़मर तू ने पहली नज़र
जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया
2) हर तरफ़ हर ज़गह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी.
No comments:
Post a Comment