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दाग तुम लगने न देना घर की उजली साख पर,
बे-असर कर देना हों जब तल्खियां बे बात पर ।
कुछ सियासी दांव हैं अपने भी खेलें गैर भी,
हो हुनर अपने में इतना घर बना ले राख पर ।
चल पड़ीं गर नफ़रतें तो, दर्द-ए-सर हो जाएंगी,
फिर सिमट जाएंगे अपने अपनी-अपनी शाख पर ।
गर हुनर खुद में हो इतना भर मुहब्बत रिश्तों में,
बे-असर हो जाएगी दौलत तू रख दे ताक पर ।
बन शज़र रखना नज़र अपनों पे औ गैरों पे भी,
वर्णा रिश्ते रिश्ते क्या मचले जो हर जज़्बात पर ।
----------------------हर्ष महाजन
2122 /2122 /2122/ 212
दाग तुम लगने न देना घर की उजली साख पर,
बे-असर कर देना हों जब तल्खियां बे बात पर ।
कुछ सियासी दांव हैं अपने भी खेलें गैर भी,
हो हुनर अपने में इतना घर बना ले राख पर ।
चल पड़ीं गर नफ़रतें तो, दर्द-ए-सर हो जाएंगी,
फिर सिमट जाएंगे अपने अपनी-अपनी शाख पर ।
गर हुनर खुद में हो इतना भर मुहब्बत रिश्तों में,
बे-असर हो जाएगी दौलत तू रख दे ताक पर ।
बन शज़र रखना नज़र अपनों पे औ गैरों पे भी,
वर्णा रिश्ते रिश्ते क्या मचले जो हर जज़्बात पर ।
----------------------हर्ष महाजन
2122 /2122 /2122/ 212
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