Monday, April 30, 2018

उससे नज़रें मिलीं हादसा हो गया ( तरही)

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उससे नज़रें मिलीं हादसा हो गया,
एक पल में यहाँ क्या से क्या हो गया ।
ख़त दिया था जो कासिद ने उसका मुझे,
"बिन अदालत लगे फ़ैसला हो गया" ।

दरमियाँ ही रहा दूर होकर भी गर,
जाने फिर क्यूँ वो मुझसे ख़फ़ा हो गया ।
गर निभाने की फ़ुर्सत नहीं थी उसे,
खुद ही कह देता वो बेवफ़ा हो गया।
दर्द सीने में ऱख राज़ उगला जो वो,
यूँ लगा मैं तो बे-आसरा हो गया ।

हर्ष महाजन
212 212 212 212

अगर दुआएँ मिलीं हार टल तो सकती है (तरही)

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अगर दुआएँ मिलीं हार टल तो सकती है ।
ये राजनीति है किस्मत बदल तो सकती है ।

कहीं चलेगी अगर बात अब मुहब्बत की,
दबी जो दिल में है सूरत निकल तो सकती है ।

ज़ुदा हुआ जो मैं तुझसे बिखर ही जाऊँगा,
मगर बिछुड़ के भी तू दिल में पल तो सकती है।

हवा के  संग चले जो बशर जमाने की,
"मिले न छाँव मगर धूप ढल तो सकती है ।"

महक रहें हैं जो गुल अपनी रंगों-खुशबू पर,
किसी भी भँवरे की नीयत फिसल तो सकती है|

वतन से होगी अगर रहनुमाओं को उल्फ़त,
ये सच है हालते सरहद सँभल तो सकती है।
न पूछा हाल कभी उसने गैर की ख़ातिर,
वो साथ मेरे ज़नाज़े के चल तो सकती है

समझ के भी न रखी दूरी गर हसीनों से,
दिया जले न जले उँगली जल तो सकती है ।

हर्ष महाजन
1212 1122 1212 22

Tuesday, April 17, 2018

ऐ ज़माने अब चला ऐसी हवा

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ऐ ज़माने अब चला ऐसी हवा ,
लौट कर आये महब्बत में वफ़ा ।

दूरियाँ मिटती नहीं अब क्या करें,
कोई मिलने का निकालो रास्ता ।

चिलचिलाती धूप में आना सनम,
गुदगुदाती है तुम्हारी ये अदा ।

ज़ख्म दिल के देखकर रोते हैं हम,
याद आये इश्क़ का वो सिलसिला

तज्रिबा इतना है सूरत देख कर,
ये बता देते हैं कितना है नशा ।

वो लकीरों में था मेरे हाथ की,
मैं ज़माने में उसे ढूँढ़ा किया ।

अश्क़ हमको दरबदर करते रहे,
जब तलक़ था दरमियाँ ये फ़ासला ।

दिल के अरमाँ छू रहे हैं अर्श अब,
आपने जब से दिया है हौंसला ।

वो रकीबों में उलझ कर रह गए,
बेगुनाही की मुझे देकर सज़ा ।

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हर्ष महाजन
2122 2122 212
आपके पहलू में आकर रो दिए

Sunday, April 15, 2018

ऐ खुदा मुझको ये होंसिला चाहिए


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ऐ खुदा मुझको ये होंसिला चाहिए,
 किस तरह तू मिलेगा दुआ चाहिए ।

उठ चुका है समंदर में ऐसा भँवर,
कश्तियों को कोई रहनुमा चाहिए ।

गर्दिश-ए-दौरां का हूँ मैं मारा हुआ,
बक्श दे अब तेरा आसरा चाहिए ।

तेरे दर पे झुका हूँ झुका ही रहूँ,
इतनी तौक़ीर की इब्तिदा चाहिए ।

ज़ख्म इतने मिले दर्द शाम-ओ-सहर,
हो असर कोई ऐसी दवा चाहिए ।

चाँद दिखता नहीं बदलियाँ हैं बहुत,
दे झलक ऐसा इक आइना चाहिए ।

तू मुहब्बत करे मैं भी सज़दा करूँ
हमको ऐसा कोई सिलसिला चाहिए ।

गर हुआ महफिलों में कहीं उनका ज़िक्र,
सरफिरों से मुझे फ़ासिला चाहिए । 

ज़िन्दगी में बचा मुक्तसर सा सफर,
प्यार में 'हर्ष' अब इंतिहा चाहिए ।

हर्ष महाजन
212 212 212 212

Sunday, April 8, 2018

ज़ुदा हुआ पर सज़ा नहीं है


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ज़ुदा हुआ पर सज़ा नहीं है,
न ये समझना ख़ुदा नहीं है ।

ज़रा सा नादाँ है इश्क़ में वो,
सबक़ वफ़ा का पढ़ा नहीं है'

दिखाऊँ कैसे मैं दिल के अरमाँ , 
चराग़ दिल का जला नहीं है ।

है दर्द ग़म का सफ़र में अब तक,
कि अश्क़ अब तक गिरा नहीं है ।

न वो ही भूले ये दिल दुखाना,
यहाँ अना भी ख़ुदा नहीं है ।

न देना मुझको ये ज़ह्र कोई,
हुनर तो है पर नया नहीं है ।

लिपट जा आकर तू ऐ महब्बत,
जनाज़ा रुख़्सत हुआ नहीं है ।

---हर्ष महाजन

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बहरे-मुतका़रिब मुज़ाहफ़ की 8 में से एक शक्ल
🌸 वज़्न-- 121 22 -- 121 22
🌸 अर्कान- फ़ऊन फ़ालुन-- फ़ऊन फ़ालुन
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Saturday, April 7, 2018

बसती है मुहब्बतों की बस्तियाँ कभी-कभी


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बसती है मुहब्बतों की बस्तियाँ कभी-कभी,
रौंदती उन्हें ग़मों की तल्खियाँ कभी-कभी ।
ज़िन्दगी हूई जो बे-वफ़ा ये छोड़ा सोचकर,
डूबती समंदरों में कश्तियाँ कभी-कभी ।
गर सफ़र में मन का हमसफर मिले तो सोचना ,
ज़िंदगी में लगती हैं ये अर्जियाँ कभी-कभी ।

उठ गए जो मुझको देख उम्र का लिहाज़ कर,
मुस्कराता देख अपनी झुर्रियाँ कभी-कभी ।
इश्क़ में यकीन होना लाजिमी तो है मगर,
दूर-दूर दिखती हैं ये मर्ज़ियाँ कभी-कभी ।

ज़िन्दगी में दोस्ती का आज भी मुकाम है,
फुरकतें भी लाज़िमी हैं दरमियाँ कभी-कभी ।
बेदिली की आग में वो छोड़ गए थे साथ जब,
सुनता हूँ सदाओं में वो सिसकियाँ कभी-कभी ।
डोलता नहीं हूँ देख शोखियों भरा ये दिल,
पर लुभायें ज़ुल्फ़ की ये बदलियाँ कभी-कभी ।

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हर्ष महाजन
वज़्न--212 1212 1212 1212 
अर्कान-- फ़ाइलुन मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन मफ़ाइलुन
बह्र - बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर अक्बूज़ मक्बूज़ मक्बूज़
*कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे।*
*मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या कसूर है*
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