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गम पे उठी ग़ज़ल तो वो दिल में उतर गयी,
खुशियों का ज़िक्र आया कयामत गुज़र गयी ।
इतनी थी खुशनसीब मेरी ज़िंदगी मगर,
इक प्यार की लकीर न जाने किधर गयी ।
वो छोटी- छोटी बातों पे रहने लगे खफा,
कहने लगे थे लोग कि किस्मत सँवर गयी ।
वो गैर सा हुआ मुझे अफसोस था मगर,
वो अजनबी हुआ मेरी दुनियाँ बिखर गयी ।
निकली जो आह दिल से असर कब कहां हुआ,
दिल से निकल के रूह के अंदर उतर गयी ।
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हर्ष महाजन
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