...
मुझको हरसूं नशा सा रहता है,
जैसे मुझमें खुदा सा रहता है ।
चाहतों का जो पूछो मुझसे कभी,
उनसे क्यूँ दिल जला सा रहता है ।
फिर भी रहता है ख़ौफ़ मुझमें क्यूँ ,
दिल भी ख़ुद से डरा सा रहता है ।
बोझ लगती हैं राहें भी अपनीं,
ज़ख्म गहरा हरा सा रहता है ।
जब भी नज़दीक होती मन्ज़िल तो,
दर्द भी फिर भला सा रहता है ।
----हर्ष महाजन 'हर्ष'
◆◆◆◆
2122 1212 22
No comments:
Post a Comment