ये रुख अब हवा का बदलने लगा है,
यूँ मौसम ये शोला उगलने लगा है ।
पता जब चला साजिशों का था हमको,
तो दिल कातिलों का दहलने लगा है ।
भला कब तलक क़ैद साँसे रहेंगी,
कवच वादियों का पिघलने लगा है ।
क्यूँ गुमराह होंगी दिशाएँ ये कब तक,
ये तेवर फ़लक का बदलने लगा है ।
हवाओं में फौलाद जैसा है जादू,
घटाओं का आलम छिटकने लगा है।
वो टिम-टिम सितारों को छिपना ही होगा,
अँधेरे में सूरज निकलने लगा है ।
हर्ष महाजन 'हर्ष'
बह्र:
122 122 122 122
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 4 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
मेरी इस रचना की आने मंच पर स्थान हेतु बहुत बहुत आभार आदरनीय पम्मी जी💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
ReplyDeleteभला कब तलक क़ैद साँसे रहेंगी,
ReplyDeleteकवच वादियों का पिघलने लगा है ।
और कोरोना फिर से रंग बदलने लगा है ।
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ।
बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरनीय संगीता जी
Deleteभला कब तलक क़ैद साँसे रहेंगी,
ReplyDeleteकवच वादियों का पिघलने लगा है ।
वाह अनुपम लेखन।
पसंदंगी के लिए बहुत अबहुत नवाज़िश आपकी 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
Deleteबेहद खूबसूरत गज़ल सर।
ReplyDeleteप्रणाम
सादर।
शुक्रिया आदरनीय
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