Thursday, July 22, 2021

वो टिम-टिम सितारों को छिपना ही होगा

 ये रुख अब हवा का बदलने लगा है,

यूँ मौसम ये शोला उगलने लगा है ।


पता जब चला साजिशों का था हमको,

तो दिल कातिलों का दहलने लगा है ।


भला कब तलक क़ैद साँसे रहेंगी,

कवच वादियों का पिघलने लगा है ।


क्यूँ गुमराह होंगी दिशाएँ ये कब तक,

ये तेवर फ़लक का बदलने लगा है ।


हवाओं में फौलाद जैसा है जादू,

घटाओं का आलम छिटकने लगा है।


वो टिम-टिम सितारों को छिपना ही होगा,

अँधेरे में सूरज निकलने लगा है ।


हर्ष महाजन 'हर्ष'

बह्र:

122 122 122 122

8 comments:


  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 4 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. मेरी इस रचना की आने मंच पर स्थान हेतु बहुत बहुत आभार आदरनीय पम्मी जी💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

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  3. भला कब तलक क़ैद साँसे रहेंगी,

    कवच वादियों का पिघलने लगा है ।

    और कोरोना फिर से रंग बदलने लगा है ।
    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरनीय संगीता जी

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  4. भला कब तलक क़ैद साँसे रहेंगी,

    कवच वादियों का पिघलने लगा है ।

    वाह अनुपम लेखन।

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    1. पसंदंगी के लिए बहुत अबहुत नवाज़िश आपकी 💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

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  5. बेहद खूबसूरत गज़ल सर।

    प्रणाम
    सादर।

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