सर-ए-आम यूँ ही जुल्फ संवारा न कीजिये
बे-मौत हमको हुस्न से मारा न कीजिये |
बे-मौत हमको हुस्न से मारा न कीजिये |
लहराते हैं यूँ गेसू कि दिल भी मचल उठे,
काँधे को यूँ अदा से उसारा न कीजिये |
रुखसार पर परीशां हो बरपा रहीं कहर,
ये नागिनों सी ज़ुल्फ़ अवारा न कीजिये |
कुंडल बनी है लट तिरी आँखें हैं छल रहीं,
आ आ के ख्वाब में यूँ इशारा न कीजिये |
जब झटकते हो ज़ुल्फ़ मेरी शायरी बने,
अब बाँध इनको जाम तो खारा न कीजिये |
ये ज़ुल्फ़ यूँ गिराईं कि दिल ही दहल उठा,
है इल्तिजा ये भूल दुबारा न कीजिये |
हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2121 1221 212
©1988
आज तो सारी शायरी जुल्फों पर आ टिकी है, यूँ जाम तो वैसे ही कड़वा होता है तो खारा हो भी जाय तो क्या ? 😄😄
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब👌👌👌👌
पसंदंगी अर दाद के लिए बहुत बहुत नवाज़िश आपकी आदरनीय संगीता जी ।
Deleteसादर