अब तेरा मेरा जाने बसर है कि नहीं है,
जो घाव दिए तूने ख़बर है कि नहीं है ।
महफ़िल से अचानक ही अधर में चले जाना,
देखो तो ग़ज़ल में वो असर है कि नहीं है |
देखो तो ग़ज़ल में वो असर है कि नहीं है |
छलनी जो किया तूने हुआ कैसे मैं जालिम,
अब सोच कोई मुझमें कसर है कि नहीं है |
इतना था हुआ रंज मुझे खुदकशी चुनी,
सोचा न समंदर में भँवर है कि नहीं है |
मैं तुझसे परेशान हुआ अश्क़ों से ख़ारिज़,
जानू न मुकद्दर में ठहर है कि नहीं है |
________हर्ष महाजन 'हर्ष' "©
©15 जून 2016 फेसबुक
बहरे हज़ज़ मुसम्मन अखरब महफूफ महजूफ
221 - 1221 - 1221 - 122
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 27 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरनीय यशोदा जी
Deleteमहफ़िल से अचानक ही अधर में चले जाना,
ReplyDeleteदेखो तो ग़ज़ल में वो असर है कि नहीं है |
अभी तो असर बाकी है । बेहतरीन ग़ज़ल ।
बहुत बहुत शुक्रिया, आपको ये पेशकश पसंद आई । सच कहूं तो ये आपकी दरियादिली औऱ ऊपर वाले का कर्म है आदरनीय ।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
Deleteहर शेर लाजवाब,उम्दा गजल ।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया, आपको ये पेशकश पसंद आई । सच कहूं तो ये आपकी दरियादिली औऱ ऊपर वाले का कर्म है आदरनीय ।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
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