Thursday, August 26, 2021


अब तेरा मेरा जाने बसर है कि नहीं है,
जो घाव दिए तूने ख़बर है कि नहीं है ।

महफ़िल से अचानक ही अधर में चले जाना,
देखो तो ग़ज़ल में वो असर है कि नहीं है | 

छलनी जो किया तूने हुआ कैसे मैं जालिम, 
अब सोच कोई मुझमें कसर है कि नहीं है |

इतना था हुआ रंज मुझे खुदकशी चुनी, 
सोचा न समंदर में भँवर है कि नहीं है |  

मैं तुझसे परेशान हुआ अश्क़ों से ख़ारिज़,  
जानू न मुकद्दर में ठहर है कि नहीं है |

________हर्ष महाजन 'हर्ष' "©
©15 जून 2016 फेसबुक
बहरे हज़ज़ मुसम्मन अखरब महफूफ महजूफ 
221 - 1221 - 1221 - 122

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 27 अगस्त 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरनीय यशोदा जी

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  2. महफ़िल से अचानक ही अधर में चले जाना,
    देखो तो ग़ज़ल में वो असर है कि नहीं है |

    अभी तो असर बाकी है । बेहतरीन ग़ज़ल ।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया, आपको ये पेशकश पसंद आई । सच कहूं तो ये आपकी दरियादिली औऱ ऊपर वाले का कर्म है आदरनीय ।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

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  3. हर शेर लाजवाब,उम्दा गजल ।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया, आपको ये पेशकश पसंद आई । सच कहूं तो ये आपकी दरियादिली औऱ ऊपर वाले का कर्म है आदरनीय ।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

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