Wednesday, January 19, 2022

आसमाँ बादल बिना नाशाद है


आसमाँ बादल बिना नाशाद है,
चाँदनी फिर चाँद की आज़ाद है । 

जब भी मौसम से ख़िज़ाँ जाने लगे,
तब समझना अब फ़िज़ा आबाद है ।

गर इबादत में बहाए अश्क़ जो,
वो ख़ुदा को इंसाँ की फरियाद है ।

जो मुहब्बत तोड़ धागा खो गई,
ज़िंदगी उसकी फ़क़त नाशाद है ।

खुदकशी को हो गया मजबूर वो,
शख्स वो जो प्यार में बर्बाद है ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 2122 212
20 जनवरी 22
नाशाद"=दुःखी, नाखुश।

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