Sunday, January 16, 2022

जब से हुई है तुमसे मुलाकात शाम की



जब से हुई है तुमसे मुलाकात शाम की,
पढ़ता हूँ अब मैं गज़लें फ़क़त तेरे नाम की ।

शोहरत को दी न मैनें तवज़्ज़ो भी आज तक ,
चाही फ़क़त ज़रा सी मुहब्बत कलाम की ।

नफ़रत से हो रहे हैं ज़रर रिश्तों में भी अब,
उल्फ़त की रह गयी है ये तस्वीर नाम की ।

पलकों में कैसे जज़्ब करूँ अश्क़ ऐ खुदा,
यादें रहीं न काबू फ़क़त इक वो शाम की ।

रिश्तों में आ चुकी थीं दरारें भी इस तरह
होती नहीं है शाम बिना कोई जाम की ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
221 2121 1221 212
17 जनवरी 22

ज़रर=नुकसान
जज़्ब= सोख

13 comments:

  1. शोहरत को दी न मैनें तवज़्ज़ो भी आज तक ,
    चाही फ़क़त ज़रा सी मुहब्बत कलाम की ।
    ..हर शेर लाजवाब.. बेहतरीन गजल ।

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    1. ज़र्रानावाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया आपका आदरनीय जिज्ञासा जी । उम्मीद करता हूँ आपकी प्रतिक्रिया मुसलसल मिलती रहेगी ।
      सादर
      🌺🌺🌺🌺

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-1-22) को "दीप तुम कब तक जलोगे ?" (चर्चा अंक 4313)पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  3. बहुत बहुत शुक्रिया आपका आदरनीय ।

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  4. बहुत बहुत शुक्रिया, आपको ये पेशकश पसंद आई और लिंक चर्चा में शामिल करने हेतु सच कहूं तो ये आपकी दरियादिली औऱ ऊपर वाले का कर्म है आदरनीय कानी जी ।💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

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  5. बहुत सुंदर गजल।

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    1. बेहद शुकृया व आभार ज्योति जी ।

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    1. पसंदंगी के लिए बहुत वहुत धन्यवाद नीतीश जी ।

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  7. वाह बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ,पढ़कर आनंद आ गया।

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  8. दिली शुक्रिया आदरनीय अभिलाशा जी ।

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  9. वाह!सराहनीय।
    सादर

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    1. ज़र्रानावाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया आपका अनीता सैनी जी । उम्मीद करता हूँ आपकी प्रतिक्रिया मुसलसल मिलती रहेगी ।
      सादर
      🌺🌺🌺🌺

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