Sunday, February 27, 2022

न जाने मुझको वो क्यूँ तलखियाँ दिखा के गया

न जाने मुझको वो क्यूँ तलखियाँ दिखा के गया,
था बावफ़ा वो मगर मुझको क्यूँ रुला के गया ।

हुआ यकीन मुझे इस फरेबी दुनियाँ पे अब,
गुलाब बन जो मिला कांटे फिर चुभा के गया ।

शिकायतें थीं मुझे पर गिले भी उसको बहुत,
ख्याल अपनी वो ग़ज़लों में कुछ सुना के गया ।

निभा रहा था वो शिद्दत से दोस्ती को मगर,
जले चरागों को दिल से वो क्यूँ बुझा के गया ।

यकीं था इश्क़ पे जिसको गुमाँ भी मुझपे बहुत,
जुदाई के वो सनम दिन क्यूँ अब थमा के गया ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
1212 1122 1212 22/112

गुनगुनाइए इस धुन पर:-

◆न मुँह छुपा के जियो औऱ न सर झुका के जियो ।

2 comments:

  1. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ।

    हुआ यकीन मुझे इस फरेबी दुनियाँ पे अब,
    गुलाब बन जो मिला कांटे फिर चुभा के गया ।

    यही तो होता आया है ।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय संगीता जी

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