Wednesday, February 23, 2022

लफ्ज़ दे जाते हैं जो ज़ख़्म दिखाएँ कैसे,

लफ्ज़ दे जाते हैं जो ज़ख़्म दिखाएँ कैसे,
दर्द सीने में जो उठता है बताएँ कैसे ।

वो जो कहता है कि लफ़्ज़ों में है जन्नत लेकिन,
लफ्ज़ मरहम है बता फिर वो लगाएँ कैसे ।

मीठी धड़कन को लिए पास से गुजरेगा कोई,
उससे उठती जो खनक दिल को सुनाएँ कैसे ।

जिसकी चोटों ने मुझे चैन से रहने न दिया,
उसपे इल्ज़ाम मुहब्बत का बनाएँ कैसे ।

इश्क़ करते भी नहीं औऱ किनारा भी नहीं,
दिल की महफ़िल में बता उसको बिठायें कैसे ।

उसकी जुल्फें ही गुनाहों का सबब है लेकिन,
ज़ह्र से अपने कसक उसकी मिटायें कैसे ।

ये भी सोचा था कि दिलबर का नजारा कर लूँ,
पर बता उसकी मुहब्बत को जगाएँ कैसे ।

हर्ष महाजन 'हर्ष'
2122 1122 1122 22(112)

इसी बह्र पर गीत गुनगुना कर देखें
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●दिल की आवाज भी सुन दिल के फसाने पे न जा 
● ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात 
●कभी खुद पे कभी हालात पे रोना आया 
●चुनरी सँभाल गोरी उड़ी चली जाए रे 
●कोई हमदम न रहा कोई सहारा न रहा 
●पाँव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी 
●तुम अगर मुझको न चाहो तो कोई बात नहीं
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